विरहा
बहुत बड़ी लिस्ट न थी मेरी ख्वाहिशों की,
तुम से ही शुरू थी और तुम्ही पै खत्म थी।
उस लिस्ट को बुद्धि समेट कर रखलेना चाहती है।
पर धड़कनों को ये बात कहां समझ आती है।
सोचते थे हम कि ये सब तुम जानते होंगे,
तुम भी मुझे मेरी तरह अपना मानते होंगे।
तुम्हारे भी नयन तन्हाई में,बरसते होंगे,
मेरी ही तरह तुम भी तड़पते होंगे।
एक झलक और आहट के लिए, आंख और कान तरसते होंगे,
सपनों में मुझे पाकर थोड़े तुम भी हरषते होंगे।
पर अब पता चला कि ये लिस्ट तो मेरी है,
पढे या न पढे ये मर्जी तो तेरी है।
ये आशा -निराशा,ये बेचैनी और तड़प सिर्फ और सिर्फ मेरी है,
दिल तो मेरा खोया है ,ऊसर में प्रेम बीज मैंने ही तो बोया है।
काश जमीन में विश्वास का खाद डाल दिया होता,
व्यर्थ गया बीज वृक्ष बन गया होता।
मेरी पीड़ा मेरी पुकार ना समझता वो गालियां।
वक्त भी न बजाता मेरी खूबसूरत भूल पै तालियां।
लालच बुरी बला है, दिल ये खूब जानता है,
ढीट भी ये निगोडा ,पराई चीज को अब भी अपना मानता है।
प्यारी सी भूल पै सिर पटक पटक पछताता है,
मेरा है तू मेरा है तू कह कर ख़ुद को भरमाता है ।
मोह ना हो जिसे उसे मोहन कहते हैं,
रे मो हन! मुझे हनो !अब ये प्रान कहते हैं।
यमुना नहीं ये ,नयन मेरे बहते हैं,
परसों कही बरसों गयीं ,पर आस लगाए रहते हैं।
हम बरसाना वो मधुपुर में रहते हैं।
सरला भारद्वाज ( पथिक)
18/3/21 /2:00am
Comments
Post a Comment