भरत का आदर्श भ्रात प्रेम (लघु नाटिका)
सिया राम मय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोर जुग पानी ।।
समस्त साहित्य प्रेमियों को सरला भारद्वाज का का सादर नमन। आज प्रस्तुत हूं जीवन का सर्वोच्च आदर्श स्थापित करने वाले परम पवित्र रामचरितमानस के एक प्रसंग को लेकर और वह प्रसंग है, भ्रात प्रेम की पराकाष्ठा का आदर्श प्रस्तुत करने वाला प्रसंग, भरत मिलाप । आज परिवारों में भाई भाई के बीच जो स्थिति पैदा हो रही हैं। उसका एक मात्र समाधान है परिवार में राम चरित मानस की अनवरत घुट्टी। मां के उर्वर लालन-पालन मेंजब संस्कारों का खाद लगाया जाता रहेगा तो हर बालक वैचारिक और नैतिक भावनात्मक रूप से स्वस्थ और परिपक्व होगा । परिवार की आधार शिला हर घर के मंदिर में होनी चाहिए।जो मंदिर से मन के मंदिर तक पहुंचनी चाहिए। हर व्यक्ति के निर्माण का मूल मंत्र इसी में मिलता है। परिवार धर्म हो या राजधर्म हो,या समाज धर्म हो या फिर राष्ट्र धर्म ,या विश्व धर्म सब की पाठशाला है रामचरितमानस। बात भ्रात धर्म है तो आइये,
इस प्रसंग से आप सभी को भरत की भावनाओं से जोड़ने का प्रयास करने के लिए सर्वप्रथम प्रस्तुत है, एक भजन ।
तत्पश्चात जुड़ेंगे हम उस प्रसंग से, जो नाटिका का विषय है।
जैसे ही भरत को ज्ञात हुआ की अयोध्या नगरी में अंधकार का कारण, राम के वन गमन का कारण ,राजा दशरथ की मृत्यु का कारण, वास्तव में उनकी माता के द्वारा मांगे गए तीन वरदान ही हैं ।तो वह अपनी माता की करनी पर आत्मग्लानि से भर उठे।
भरत अपनी मां से कहते हैं-
जननी मैं न जियूं बिन राम ।
मैं न जियूं बिन राम।
कपटी कुटिल कुबुद्धि अभागिनी ,
कौन दियो अस ज्ञान।।
सुर नर मुनि सब दोष देत हैं,
कियो नहीं भल काम ।।
जननी मैं -----------
राम लखन सिया वन को गए हैं,
पिता गये सुर धाम।।
प्राप्त होत वन को हम जैहै ,
अवध हमें कहां काम।।
जननी मैं न जियूं------------
(चित्रकूट का दृश्य)
( लक्ष्मण को मिली भारत के आने की सूचना)
लक्ष्मण -भैया! भैया! भैया!
राम अरे !लक्ष्मण ,क्या हुआ रे !
लक्ष्मण- भैया! भैया भरत अपनी सेना सहित हम से युद्ध करने आ रहे हैं।
हमें वनवास भिजवाकर भी उन्हें चैन न मिला।
राम-(डाटतेहुए) यह क्या बोले जा रहे हो?
लक्ष्मण -हां भैया मैं ठीक बोल रहा हूं ,भरत भैया हमें अपने मार्ग से हटा देना चाहते हैं तभी तो---
राम- पगले शांत हो जा, और विवेक से काम ले ।क्रोध बुद्धि को खा जाता है।
मेरा भरत ऐसा कभी नहीं कर सकता।
लक्ष्मण_ भैया!फिर वह सेना सहित क्यों आ रहे हैं?
राम _लक्ष्मण !आने दो उन्हें ,सब पता चल जाएगा ।मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मेरा भरत कैसा है।
लक्ष्मण -पर भैया राजमद अंधा कर देता है सभी को।
राम -पगले , खटाई की एक बूंद से कहीं दूध का समुद्र फट सकता है? राजमद और भरत को । सूरज चाहे पश्चिम से उदय हो सकता है , अग्नि शीतल हो सकती है, पर सरल हृदय भरत को कपट छू नहीं सकता।
लक्ष्मण--ईश्वर आपके अटल विश्वास की रक्षा करें। मैं सावधान रहता हूं।
( दूर से भरत के पुकारने का स्वर) भैया। मेरे प्रभु। श्रीराम।
राम- ले देख ले लक्ष्मण,दूर से ही जान ले,ये रोता बिलखता रथ को त्यागकर नंगे पैर दौड़ता भरत तुझे हमारा शत्रु दिखता है?
भरत--भैया !मेरे भैया श्री राम।(चरणो से लिपट जाते हैं)
राम-( उठाते हुए) गले लगाकर , भरत मेरे भरत।
भरत - (रोते हुए) मेरा जन्म ना हुआ होता तो आपका वनवास न हुआ हो ता भैया।
राम-संसार में सब कुछ विधाता की इच्छा से होता है भरत।
भरत- किंतु भैया !इस संसार में मेरा नाम कलंकित हो गया है। कलंकित हो गया मेरा नाम भैया।
राम -नहीं रे भरत !भूल है यह तेरी। तेरा नाम कलंक से नहीं प्रेम और त्याग से अमर होगा। तू तो प्रेम और त्याग की मूर्ति है।
भरत -भैया आप तो दया के सागर हैं, तभी तो ऐसा कहते हैं ।आप मुझे दंड दीजिए ।दण्ड दीजिए मुझे भैया।
राम -पगले दंड तो दूंगा तुझे !खुद को पीड़ा पहुंचाने का, और दण्ड है -तुझे हृदय से लगाने का। मेरे प्यारे भरत ।आ मेरे हृदय से लग जा भरत।
सीता - अरे!भैया भरत!
भरत -माता !(चरण छूकर) सेवक का प्रणाम स्वीकार करें माता।
सीता -यशस्वी भव! भैया !
भरत--भाभी दंड दो मुझे, मैं आपका दोषी हूं। अपराध किया है मैंने कैकेई की कोख से जन्म लेने का । जिसके कारण आज आप कष्ट सहती हैं।
सीता- ऐसा न कहो भैया जहां मेरे स्वामी हो वहां कष्ट कैसे हो सकता है? मैं तो यहां इनके साथ परम सुख सुख के के साथ रह रही हूं।
लक्ष्मण- भैया, भैया ( चरण छूकर) रोते हुए। भैया भरत।
भरत- लक्ष्मण मेरे लक्ष्मण! मेरे भाई धन्य है तू । बडभागी है तू !जो प्रभु सेवा में रत है।
मैं तो बड़ा अभागा हूं रे। मैं बड़ा अभागा हूं।
लक्ष्मण- भैया मुझे दण्ड दो ।मेरी जीभ काट लो । मैंने आपके विषय में न जाने क्या -क्या अपशब्द कहे। मुझे माफ कर दो भैया।
भरत--ठीक किया रे लक्ष्मण , मैं इसी योग्य हूं। तूने ठीक किया ।
लक्ष्मण -भैया ,भैया मुझे क्षमा कर दो, भैया!
भरत-भैया मैं आप को लेजाने आया हूं। पीछे गुरुदेव सुमंत आदि भी आ रहे हैं। चलो आप सबलौट चलो।
अयोध्या आपकी प्रतीक्षा कर रही है।
राम - (गुरु और सुमंत को प्रणाम करतें हुए) गुरुदेव!आप भी चले आये इस पगले के साथ ,और सुमंत्र जी आप भी। पिताजी को ढांढस कौन बंधाता होगा।?
वशिष्ठ - होनी बड़ी बलवान है ,होनी होय सो होय ---
राम -स्पष्ट कीजिए गुरुदेव। मुझे कुछ समझ नहीं आया।
सुमंत _राम! महाराज नही रहे , अयोध्या अनाथ हो गयी।
राम -आह ! पिताजी। आप -----
वशिष्ठ- धैर्य धरो राम! भरत के आग्रह पर विचार करो। अयोध्या को तुम्हारी आवश्यकता है।
राम -धर्म की दूरी धर्मात्मा गुरुदेव! आपने ही तो हमें धर्म की शिक्षा दी है ,और मैं अपने पुत्र धर्म का ही तो पालन कर रहा हूं।
वशिष्ठ -राम! एक तरफ तो तुम्हारा धर्म है, और दूसरी तरफ भरत का प्रेम और भक्ति !दोनों ही अपने स्थान पर डटे हुए हैं ।तुम तो भक्तवत्सल हो ।आखिर में निर्णय तुम्हें ही लेना होगा राम!
वास्तव में अयोध्या सुनी है और उसे एक योग्य राजा की आवश्यकता है।
भरत - हां भैया! अनाथ अयोध्या को सनाथ बना दीजिए। लौट चलिए,लौट चलिए लौट चलिए भैया।
राम- भरत बनवास के पहले कर्तव्य मेरे अधीन थे ,पर अब मैं कर्तव्य के अधीन हूं भैया।
भरत-बातें मुझे धर्म संकट में डालती है भैया।
राम - भरत क्या चाहते हो ? पिताजी ने प्राण त्याग दिए पर वचन न जाने दिया। उन वचनों की मर्यादा तोड़ दूं।
भरत - नहीं भैया मैं उन वचनों को नहीं करता। उन वचनों को मैं निभाऊंगा। आप अयोध्या जायेंऔर मैं वन। मैं भी तो पुत्र हूं धर्मात्मा महाराज का।
राम - नहीं भरत आदेश मेरे लिए है। मैं चौदह वर्ष के बाद ही लौटूंगा।
भरत- पर, मैं आपके बिना वापस न जाऊंगा भैया।
राम- तुम्हें जाना होगा भरत , और राजधर्म निभाना होगा। ये मेरा आदेश भी है, और मेरी शपथ भी।
भरत -शपथ क्यों देदी भैया ,शपथ क्यों देदी ।अब तो निभानी पड़ेगी।
आपकी आज्ञा शिरोधार्य।पर मुझे आपकी प्रेरणा चाहिए।
राम -कैसी प्रेरणा रे भोले।
भरत- आपके चरणों की प्रेरणा। उसके बिना मुझसे कुछ नहीं हो पायेगा प्रभु , कुछ नहीं।
राम - हो पायेगा भरत ,मन से तो मैं हमेशा ही तुम्हारे साथ हूं।
भरत- आप नहीं चल सकते तो आप इन चरण पादुका को अपने चरणों से पवित्र कर दीजिए । आपके लौटने तक यही सिंहासन पर विराजमान होकर मेरी प्रेरणा बनेगीं।
राम- ले पगले ,तू बड़ा भोला और हठी है।
भरत -और हां भैया यदि आपने चौदह वर्ष से अधिक समय लगाया तो अपनी देह त्याग दूंगा।
राम -ले ,वचन रहा हूं,देरी ना करूंगा । नियत समय से लौट आऊंगा।
अब तू जा अयोध्या को अधिक समय तक सूनी नहीं छोड़ सकते।
भरत -जो आज्ञा भैया।
भरत का धीरे -धीरे प्रस्थान (गीत की ध्वनि---)
राम की भरत की महिमा सदियों ने जानी,
लेकर के आए आज अमर कहानी।
१.हम है छात्र एस. वी. एम. के, गायें पावन गाथा ,
भरत राम प्रेम पर झुकाए जग माथा
रघुकुल के दीप दोनों धीर वीर ज्ञानी।
लेकर के आये आज अमर कहानी।
२. भरत जैसा भ्रातभाव मन में जो जागै,
कलुषक्लेश दुनिया का घर -घर से भागै,
पढि लेउ जो, गुनि लेउ जो , रामचरित वानी।
लेकर के आये आज अमर कहानी।
३.डाक्टर बनाओ चाहे इंजीनियर बनावौ
राम के चरित की थोड़ी घुट्टी भी पिलावौ
जाग जाओ! मम्मी -पापा, जागो !दादी नानी।
लेकर के आये आज अमर कहानी।
सरला भारद्वाज १९/३/२१ /१:४०pm
नाट्य रूपांतरण और संवाद लेखन।
( संदेश गीत की ध्वनि-- श्री प्रेम चंद शर्मा-)
ऐसौ जतन करौ मेरे भैया ,घर- घर होय राम अवतार।
सुख और शांति रहे वा घर में ,जा घर पनपै राम विचार
1.श्री राम के विचार, सुख शांति आधार ,
जो भी लेंगे सिर धार पास आवे नहीं क्लेश।
क्लेश स्वार्थ को फल ,स्वार्थ पापन कौ थल ,
परमारथ ही हल ,पाप रहे नहीं शेष ।
जब सब परमार्थी बने तो ,फिर बैकुंठ बने संसार ।
ऐसो जतन करो मेरे भैया, घर घर हो राम अवतार।
2.ऊंच नीच जाति पांति थोथी लोगन में भ्रांति,
सौ कोश रहै शांति भैया ऊंच नीच से,
भिलनी के बेर खाय, गुह कंठ चिपकाय,
गये राम समझाय , भैया रहौ प्रीति से।
पढिये गुनिये श्री राम चरित मानस में जीवन सार ।।
ऐसौ जतन --------
नाट्य रूपांतरण और संवाद लेखन।
सरला भारद्वाज।
3/3/21/ समय रात्रि 11:40
jai hind mam
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