तुम ही तुम
अंदाज़ बयान कर रहा तुम्हारा,कोई नहीं तुम्हारे हम!
पर कमबख्त दिल समझता ही नहीं,
खुद को जो तुम्हारा मान बैठे हैं हम!
मेरे उजले धवल मन पर ,ऐसा श्याम रंग चढ़ा है तुम्हारा,
इस जनम में तो ना छुड़ा पायेंगे हम!
लाख मल मल के तेरी,प्रीत नदी में ही तो नहायेगें हम।
टूट भले ही जायें, बिखर नहीं सकते हम!
बुत परस्त हैं जी, भावनाओं के बुत बनाने लगे हैं हम!
अधिक क्या कहे साहिब, बुत में ही ढलने लगे हैं हम!
छाछ को लूटने वाले छलिया हो तुम ,
मन मोहा तो मनमोहना मान बैठा मेरा मन,
मोहन नहीं,मोह ना हो, जान गये हैं हम!
उफनती है अश्कों की धारा से यमुना,
और तुम तो भेजते हो, गूढज्ञान का गहना,
बृज को बचाने को बांध लगाओगे ,आस लगाए थे हम!
जानते हैं, भावनाओं को पढने का हुनर नहीं तुम में,
भावनाओं के कागजों की पतंग उडाने लगे हैं हम!
हर कागज में तुम्हे आजमाने लगे हैं हम!
सरला भारद्वाज
27/2/21
अतुल्य!! 👏🏻👏🏻👏🏻
ReplyDeleteराधे राधे!!