"अलंकार" कक्षा 7,8 9, हेतु
अलंकार का अर्थ
अलंकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अलम और कार। अलम का अर्थ है सुंदर ,सुसज्जित ,सुशोभित , तथा कार का अर्थ है करना।
अर्थात सुंदर बनाना या सुंदर करना। साहित्य में जब विभिन्न प्रयोगों के द्वारा साहित्य को सुंदर बनाने का प्रयास किया जाता है या स्वाभाविक रूप से जहां साहित्य सुंदर बन जाता हैै, वह स्थिति अलंकार कहलाती है।
परिभाषा
काव्य को सुंदर बनाने के साधन अलंकार कहलाते हैं ।अर्थात जिस प्रकार एक स्त्री की सुंदरता आभूषण बढ़ाते हैं,
उसी प्रकार अलंकार काव्य की सुंदरता बढ़ाते हैं। काव्य में चार चांद लगा देते हैं। अतः अलंकार काव्य रूपी कामिनी के आभूषण है।
अलंकारों के प्रकार
अलंकार दो प्रकार के होते हैं- शब्दालंकार और अर्थालंकार
जब काव्य में शब्दों के आधार पर चमत्कार उत्पन्न हो ,शब्दों के आधार पर कविता प्रभावशाली बने तो, वहां शब्दालंकार होता है ,तथा जब कविता में अर्थ के आधार पर कविता में विशेष चमत्कार उत्पन्न हो, तो वहां अर्थालंकार होता है।
सीबीएसई के नवम कक्षा के पाठ्यक्रम में समाहित अलंकार।
(सीबीएसई में कक्षा सप्तम और अष्टम में जो अलंकार दिए गए हैं वह भी इसी में समाहित हैं जिन्हें छात्र अपनी सुविधा अनुसार चयन कर लें और लिखकर याद करें।)
CBSE के पाठ्यक्रम कक्षा नवम a course मैं निम्नलिखित अलंकारों को समाहित किया गया है।(8th class के छात्र अपने सिलेेेबस के आधार पर करें)
1. अनुप्रास अलंकार ।
2. यमक अलंकार।
3. श्लेष अलंकार।
4. उपमा अलंकार।
5.रूपक अलंकार।
6.उत्प्रेक्षा अलंकार।
7.मानवीकरण अलंकार।
8.अतिशयोक्ति अलंकार।
1.*अनुप्रास अलंकार-
जहां काव्य पंक्तियों में एक ही वर्ण की आवृत्ति बार-बार होती है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है ।
अर्थात कविता की किसी पंक्ति में एक ही अक्षर का बार बार आना अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
जैसे
*तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
*रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम।
*चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में।
*मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
*कालिंदी कूल कदंब की डारन।
*मोर मुकुट मकरा करत कुंडल गल बैजंती माल।
*मुदित महिपति मंदिर आए।
उपर्युक्त पंक्तियों को यदि ध्यान से देखा जाए तो इन पंक्तियों में किसी न किसी अक्षर की बार-बार आवृत्ति हो रही है।
अलंकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है अलम और कार। अलम का अर्थ है सुंदर ,सुसज्जित ,सुशोभित , तथा कार का अर्थ है करना।
अर्थात सुंदर बनाना या सुंदर करना। साहित्य में जब विभिन्न प्रयोगों के द्वारा साहित्य को सुंदर बनाने का प्रयास किया जाता है या स्वाभाविक रूप से जहां साहित्य सुंदर बन जाता हैै, वह स्थिति अलंकार कहलाती है।
परिभाषा
काव्य को सुंदर बनाने के साधन अलंकार कहलाते हैं ।अर्थात जिस प्रकार एक स्त्री की सुंदरता आभूषण बढ़ाते हैं,
उसी प्रकार अलंकार काव्य की सुंदरता बढ़ाते हैं। काव्य में चार चांद लगा देते हैं। अतः अलंकार काव्य रूपी कामिनी के आभूषण है।
अलंकारों के प्रकार
अलंकार दो प्रकार के होते हैं- शब्दालंकार और अर्थालंकार
जब काव्य में शब्दों के आधार पर चमत्कार उत्पन्न हो ,शब्दों के आधार पर कविता प्रभावशाली बने तो, वहां शब्दालंकार होता है ,तथा जब कविता में अर्थ के आधार पर कविता में विशेष चमत्कार उत्पन्न हो, तो वहां अर्थालंकार होता है।
सीबीएसई के नवम कक्षा के पाठ्यक्रम में समाहित अलंकार।
(सीबीएसई में कक्षा सप्तम और अष्टम में जो अलंकार दिए गए हैं वह भी इसी में समाहित हैं जिन्हें छात्र अपनी सुविधा अनुसार चयन कर लें और लिखकर याद करें।)
CBSE के पाठ्यक्रम कक्षा नवम a course मैं निम्नलिखित अलंकारों को समाहित किया गया है।(8th class के छात्र अपने सिलेेेबस के आधार पर करें)
1. अनुप्रास अलंकार ।
2. यमक अलंकार।
3. श्लेष अलंकार।
4. उपमा अलंकार।
5.रूपक अलंकार।
6.उत्प्रेक्षा अलंकार।
7.मानवीकरण अलंकार।
8.अतिशयोक्ति अलंकार।
1.*अनुप्रास अलंकार-
जहां काव्य पंक्तियों में एक ही वर्ण की आवृत्ति बार-बार होती है, वहां अनुप्रास अलंकार होता है ।
अर्थात कविता की किसी पंक्ति में एक ही अक्षर का बार बार आना अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
जैसे
*तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
*रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम।
*चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में।
*मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
*कालिंदी कूल कदंब की डारन।
*मोर मुकुट मकरा करत कुंडल गल बैजंती माल।
*मुदित महिपति मंदिर आए।
उपर्युक्त पंक्तियों को यदि ध्यान से देखा जाए तो इन पंक्तियों में किसी न किसी अक्षर की बार-बार आवृत्ति हो रही है।
जैसे -प्रथम पंक्ति में - त वर्ण
, द्वितीय पंक्ति मेंं- र वर्ण,
, द्वितीय पंक्ति मेंं- र वर्ण,
तृतीय और चतुर्थ पंक्ति -म वर्ण की आवृत्ति है।
अतः स्पष्ट रूप से यहां पर अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
2.यमक अलंकार
जब किसी काव्य पंक्ति में कोई भी अनेकार्थी शब्द एक से अधिक बार प्रयोग हो, और प्रत्येक बार उसका जब अर्थ भिन्न हो, तो वहां यमक अलंकार होता है। जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में वर्णों के द्वारा चमत्कार पैदा किया जाता है, उसी प्रकार यमक अलंकार में शब्दों के द्वारा चमत्कार उत्पन्न किया जाता है।
अतः स्पष्ट रूप से यहां पर अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
2.यमक अलंकार
जब किसी काव्य पंक्ति में कोई भी अनेकार्थी शब्द एक से अधिक बार प्रयोग हो, और प्रत्येक बार उसका जब अर्थ भिन्न हो, तो वहां यमक अलंकार होता है। जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में वर्णों के द्वारा चमत्कार पैदा किया जाता है, उसी प्रकार यमक अलंकार में शब्दों के द्वारा चमत्कार उत्पन्न किया जाता है।
उदाहरण
1.*कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
जा खाए बोरात नर वा पाए बोराय।
स्पष्टीकरण
इस दोहे में कनक शब्द दो अर्थों में प्रयोग हुआ है पहले का अर्थ है धतूरा और दूसरे का अर्थ है सोना ।
यहां कनक शब्द की दोबार आवृति हुई है ।परंतु अर्थ 2 है यहां पर यमक अलंकार है।
2.*सारंग ने सारंग ग, सारंग बोलो आय ।
जो मुख ते सारंग कहे ,सारंग निकसो जाय।
इस दोहे में सारंग शब्द तीन अर्थों में प्रयोग हुआ है। मोर ,सांप ,बादल ।
मोर ने सांप को पकड़ लिया तभी बादल गड़गड़ाने लगा। यदि मोर मुख से कुछ कहेगा तो सांप निकल कर भाग जाएगा ।सारंग शब्द के द्वारा दोहे में विशेष चमत्कार उत्पन्न हो गया है ।यमक अलंकार का सुंदर प्रयोग है।
**3.काली घटा का घमंड घटा।
इस पंक्ति में घटा शब्द दो बार आया है पहली घटा का अर्थ बादल की घटा और दूसरी घटा का अर्थ घटना या कम होना है।
*
4.तू मोहन के उर्वशी है उरवशी समान।
इस काव्य पंक्ति में उर्वशी शब्द दो बार आया है, एक उर्वशी का अर्थ हृदय में बसी हुई है ,और दूसरी उर्वशी देव सुंदरी अप्सरा से समानता के रूप में प्रयोग किया गया है।
5.ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
कंदमूल भोग करें ,कंदमूल भोग करें
,तीन बेर खाती थी ते तीन बेर खाती हैं ।
इन काव्य पंक्तियों में मंदिर का अर्थ है ऊंचे महल और पर्वत की गुफाएं। कंदमूल का अर्थ है कंदमूल फल और सूखे मेवे।
तीन बेर का अर्थ है तीन बेरी के बेर तीन दफा तीन बार।
इनकम काव्य पंक्तियों में कवि ने बड़ी ही चतुराई से अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग करके एक विशेष चमत्कार पैदा कर दिया है। कवि इन काव्य पंक्तियों में स्पष्ट कर रहा है ,कि जो बेगमें कभी ऊंचे महलों के अंदर रहती थी ,आज वह ऊंची पर्वत की कंदरा ओं के बीच रहती हैं। जो कभी कंदमूल फल खाकर रहती थी ।मेवा खाकर रहती थी ।आज वह जंगली कंदमूल फल खा रही हैं ।कभी जो तीन तीन बार भोजन करती थी ,आज वह मात्र जंगली झरवेरी के तीन बेर खा कर रह जाती हैं।
3.श्लेष अलंकार
श्लेष शब्दश अर्थ है चिपकना या चिपका हुआ ।जब किसी काव्य पंक्ति में एक ही शब्द में एक से अधिक अर्थ चिपके रहते हैंं, अर्थात एक अनेकार्थी शब्द एक ही बार प्रयोग होता है, लेकिन एक से अधिक अर्थ छुपे रहते हैं वहां श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण
1.*पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।
इस पंक्ति में पानी शब्द तीन अर्थों में में प्रयोग है -मोती के लिए -चमक के रूप मेंं
**3.काली घटा का घमंड घटा।
इस पंक्ति में घटा शब्द दो बार आया है पहली घटा का अर्थ बादल की घटा और दूसरी घटा का अर्थ घटना या कम होना है।
*
4.तू मोहन के उर्वशी है उरवशी समान।
इस काव्य पंक्ति में उर्वशी शब्द दो बार आया है, एक उर्वशी का अर्थ हृदय में बसी हुई है ,और दूसरी उर्वशी देव सुंदरी अप्सरा से समानता के रूप में प्रयोग किया गया है।
5.ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती है।
कंदमूल भोग करें ,कंदमूल भोग करें
,तीन बेर खाती थी ते तीन बेर खाती हैं ।
इन काव्य पंक्तियों में मंदिर का अर्थ है ऊंचे महल और पर्वत की गुफाएं। कंदमूल का अर्थ है कंदमूल फल और सूखे मेवे।
तीन बेर का अर्थ है तीन बेरी के बेर तीन दफा तीन बार।
इनकम काव्य पंक्तियों में कवि ने बड़ी ही चतुराई से अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग करके एक विशेष चमत्कार पैदा कर दिया है। कवि इन काव्य पंक्तियों में स्पष्ट कर रहा है ,कि जो बेगमें कभी ऊंचे महलों के अंदर रहती थी ,आज वह ऊंची पर्वत की कंदरा ओं के बीच रहती हैं। जो कभी कंदमूल फल खाकर रहती थी ।मेवा खाकर रहती थी ।आज वह जंगली कंदमूल फल खा रही हैं ।कभी जो तीन तीन बार भोजन करती थी ,आज वह मात्र जंगली झरवेरी के तीन बेर खा कर रह जाती हैं।
3.श्लेष अलंकार
श्लेष शब्दश अर्थ है चिपकना या चिपका हुआ ।जब किसी काव्य पंक्ति में एक ही शब्द में एक से अधिक अर्थ चिपके रहते हैंं, अर्थात एक अनेकार्थी शब्द एक ही बार प्रयोग होता है, लेकिन एक से अधिक अर्थ छुपे रहते हैं वहां श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण
1.*पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून।
इस पंक्ति में पानी शब्द तीन अर्थों में में प्रयोग है -मोती के लिए -चमक के रूप मेंं
। मनुष्य के लिए- सम्मान के रूप में ।
तथा आटे के लिए- जल के रूप में।
2.*सुबरन को ढूंढत फिरत कवि व्यभिचारी चोर।
इस पंक्ति में सुवर्ण शब्द तीन अर्थ प्रयोग हुआ है सुंदर अक्षर या वर्ण सुंदर रूप रंग और स्वर्ण ।
3.*मंगन को देख पट देत बार बार।
इस काव्य पंक्ति में पट के दो अर्थ हैै- दरवाजा और कपड़े।
अर्थात मांगने वालों को देखकर कुछ लोग दरवाजा बंद कर लेते हैं ,और कुछ लोग वस्त्र कपड़े दान करते हैं।
यह बात स्पष्ट हो जाती है यमक और श्लेष अलंकार की समझ के लिए शब्द ज्ञान होना अति आवश्यक है जितना शब्दकोश हमारा बड़ा होगा उतना ही अच्छा होगा।
एक अन्य अद्भुत उदाहरण और दर्शनीय हैं।
स्थानीय है जो मैंने बचपन में अपने पिताजी से सीखा था।
**** कीकर पाकर नीम जामुन फलसा आंवला ।
सेब कदम कचनार पीपल रत्ती तू न तज।
इन काव्य पंक्तियों का एक छोटा सा अर्थ है कि यह सभी पेड़ों के नाम हैं ।
जबकि इसका दूसरा बड़ा गंभीर अर्थ है
**** कीकर पाकर नीम जामुन फलसा आंवला ।
सेब कदम कचनार पीपल रत्ती तू न तज।
इन काव्य पंक्तियों का एक छोटा सा अर्थ है कि यह सभी पेड़ों के नाम हैं ।
जबकि इसका दूसरा बड़ा गंभीर अर्थ है
-हे !स्त्री तू क्या करती है ?तेरे मन में जो फल प्राप्त करने की इच्छा आ रही है ।उसके लिए पति के चरणों की सेवा कर ।उसका रत्ती भर भी त्याग मत कर।
अन्य उदाहरण
1.*चिर जीवो जोरी जोरी जुड़ें क्यों न सनेह गंभीर
जेहि घट ये वृषभानूजा यह हलधर के वीर।
1.*चिर जीवो जोरी जोरी जुड़ें क्यों न सनेह गंभीर
जेहि घट ये वृषभानूजा यह हलधर के वीर।
स्पष्टीकरण-
वृषभानु जा और हलधर का अर्थ है, राधा और गाय, बैल और कृष्ण के भाई बलराम,
वृषभानु जा और हलधर का अर्थ है, राधा और गाय, बैल और कृष्ण के भाई बलराम,
2.*मधुबन की छाती पर देखो सूखी कितनी इसकी कलियां।
कलियां के दो अर्थ हैंं- योवन और फूल की कली।
3.जो रहीम गति दीप की कुल कपूत की सोय।
बारे उजियारा करें बढ़े अंधेरो बढ़े अंधेरों होय।
बारे=छोटा/बचपन,और दीपक जलना।
बढ़े= बड़ा होना तथा बुझाना।
,4..उपमा अलंकार
जब काव्य पंक्तियों में किसी के व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरी प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से की जाती है तो वहां उपमा अलंकार होता है ।अर्थात दो व्यक्ति या वस्तुओं में समानता दिखाना।
जैसे
कृष्ण कीआंखें कमल जैसी हैं।
और उनके दांत मोती जैसे हैं।
इन दोनों वाक्यों में कृष्ण की आंखों की तुलना कमल से तथा दांतों की तुलना मोती से की जा रही है समानता बताई जा रही है अतः या उपमा अलंकार है।
उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं-
उपमेय,
उपमान ,
साधारण धर्म,
और वाचक शब्द।
*उपमेंय
जिस वस्तु या व्यक्ति की समानता बताई जाती है वह मैं होता है वह ऊपर के उदाहरणों में कृष्ण के दांत और कृष्ण की आंखें उपमेय हैं।
**उपमान
जिस वस्तु से समानता बताई जाती है वह उपमान कहलाता है ऊपर के उदाहरणों में मोती और कमल उपमान है।
साधारण धर्म
जिस शब्द के द्वारा समानता बताई जाती है वह साधारण धर्म कहलाता है ।
जैसे- यदि यह कहा जाए कि कृष्ण के दांत मोती जैसे चमकीले हैं तो यहां चमकीले शब्द साधारण धर्म होगा।
वाचक शब्द समानता को बताने वाला शब्द वाचक शब्द कहलाता है यदि यह कहा जाए कि कृष्ण के दांत मोती के समान चमकीले हैं, या मोती जैसे चमकीले हैं, या मोती की भांति चमकीले हैं ,
वाचक शब्द समानता को बताने वाला शब्द वाचक शब्द कहलाता है यदि यह कहा जाए कि कृष्ण के दांत मोती के समान चमकीले हैं, या मोती जैसे चमकीले हैं, या मोती की भांति चमकीले हैं ,
तो *जैसे* ,समान *भांति *की तरह* के जैसे *वाचक शब्द है।
उदाहरण के लिए
पीपर पात सरिस मन डोला।
काव्य पंक्ति में पीपल के पत्ते से मन की चंचलता की तुलना की जा रही है ।समानता बताई जा रही है। इसलिए मन उपमेय है ।
पीपल का पत्ता- उपमान है।
,डोला - शब्द साधारण धर्म है ।
और सरिस -शब्द वाचक शब्द है।
अन्य उदाहरण
हरि पद कोमल कमल से।
इस काव्य पंक्ति में भगवान विष्णु भगवान या कृष्ण के चरणों की तुलना कोमल कमल से की गई है।
अतः उनके पद यानी
1.- चरण -उपमान है।
2.कमल -उपमेय है।
3.कोमल -साधारण धर्म है।
3.कोमल -साधारण धर्म है।
4.से -वाचक शब्द है।
उपमा अलंकार की सरल पहचान है । काव्य पंक्तियों में- के समान, की भांति ,के जैसे, की तरह, सम, सरिस ,जैसी ,जैसी, आदि शब्दों का प्रयोग होता है।
5. रूपक अलंकार
जब काव्य पंक्तियों में प्रस्तुत और अप्रस्तुत में बहुत अधिक समानता होने के कारण दोनों को एक ही समझ लिया जाता है ।
अर्थात उपमान और उपमेय दोनों मिलकर एक हो जाते हैं। और दोनों में भेद नहीं किया जा सकता है।
अर्थात उपमेंय पर उपमान का आरोप होता है ,तो वहां रूपक अलंकार होता है ।
जैैसे-
कमल नयन
चरण कमल
इन दोनों उदाहरणों में नयन और चरण ही कमल है और कमल ही चरण और नयन है अर्थात दोनों मिलकर एक हो गए हैं ।यहां रूपक अलंकार है ।
जैैसे-
कमल नयन
चरण कमल
इन दोनों उदाहरणों में नयन और चरण ही कमल है और कमल ही चरण और नयन है अर्थात दोनों मिलकर एक हो गए हैं ।यहां रूपक अलंकार है ।
अन्य उदाहरण
मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों
इस काव्य पंक्ति में कृष्ण चंद्रमा जैसा खिलौना नहीं लेना चाहते बल्कि चंद्रमा को ही खिलौना बना कर खेलना चाहते हैं। ।अतः इसमें रूपक अलंकार है।
*शशि मुख पर घूंघट डाले।
*अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।
*आए महंत वसंत।
*पायोजी मैंने राम रतन धन पायो।
यह सब उदाहरण रूपक अलंकार के हैं ।
उदाहरणों में चंद्रमा रूपी मुख्, है अंबर रूपी पनघट है ,तारा रूपी घड़ा है ,महंत रूप बसंत ,राम रूपी रत्न है।
6.उत्प्रेक्षा अलंकार
जहां उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है।
वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।
अर्थात प्रस्तुत में प्रस्तुत की संभावना करना उत्प्रेक्षा का गुण है ।इस अलंकार की सरल सी पहचान है -कि काव्य पंक्तियों में जनू ,जानो ,जनों, मनु ,मानो ,मनो ,ज्यूं, नू ,मन ,मानव ,मन , जैसे शब्दों का प्रयोग होता है।
उदाहरण
,*उस काल मारे क्रोध केे, तन कांपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से, बहता हुआ सागर जगा।
यह काव्य पंक्तियां महाभारत के युद्ध काल की पंक्तियां हैं ।क्रोध के मारे अर्जुन का शरीर ऐसे कांप रहा था मानो हवा के जोर से हवा के वेग से सागर में लहरे पड़ गई हों ।यहां वाचक शब्द मानो के द्वारा उत्प्रेक्षा अलंकार स्पष्ट किया गया है।
*मेघ आए बड़े बन ठन के सवर के।
पाहुन ज्यों आए हो गांव में शहर के।
*सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात
मनो नीलमनी शैल पर आतप पर्यो प्रभात।
उपरोक्त उदाहरण में गहरी स्याही वाले शब्द उत्प्रेक्षा की पहचान कराते हैं।
7.मानवीकरण अलंकार
मानवीकरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है।
मानव और करण। किसी भी वस्तु या जीव पर मानव की क्रियाओं का आरोप करना मानवीकरण के अंतर्गत आता है ।
अर्थात मानव को छोड़कर अन्य किसी वस्तु में मानव के क्रियाकलापों की कल्पना करना उन को दर्शाना मानवीकरण अलंकार है।
मेघ आए बड़े बन ठन के सवर के इन पंक्तियों में मेघ जड़ पदार्थ हैं ।लेकिन यहां पर कवि ने उनको मनुष्यों की तरह से बनाया हुआ दर्शाया है। मानव की क्रिया का आरोप किया गया है।
अन्य उदाहरण
*आगे-आगे नाचती गाती हवा चली।
*संध्या सुंदरी आकाश से उतर रही थी चुपचाप।
*तालाब में बगुला अपने पैरों की कंगी से बालों को संभाल रहा था।
*देखो बगीचे में फूल कैसे दांत दिखा कर मुस्कुरा रहे हैं।
*वर्षा आगमन की खुशी में पेड़ तालियां बजा बजाकर नाच रहे हैं।
*आकाश ने अपने माथे पर सूरज के सिंदूर की बिंदी लगा रखी है।
8.अतिशयोक्ति अलंकार
अतिशयोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है।
अतिशय तथा उक्ति ।
जिसका अर्थ है किसी भी बात को बढ़ा चढ़ाकर कहना ।
जब काव्य पंक्तियों में किसी के गुणों या वीरता का बखान जब बढ़ा चढ़ाकर किया जाता है। वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है ।
जैसे
*हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग।
लंका सारी जल गई गए निशाचर भाग।
जैसे
*हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग।
लंका सारी जल गई गए निशाचर भाग।
इन काव्य पंक्तियों में हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही लंका को जलने की घटना बताई गई है यानी बात को बहुत बड़ा चढ़ाकर कहा गया है।
अन्य उदाहरण
*देख लो साकेत नगरी है यही।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
*आगे नदिया पड़ी अपार।
घोड़ा कैसे उतरे पार ।
राणा ने सोचा इस बार ।
तब तक चेतक था उस पार।
*देखि सुदामा की दीन दशा, करुणा करके करुणानिधि रोए ।
पानी परात को हाथ छुयो नहीं, नैनन के जल सो पग धोए।
Krishna Shah sisodiya thanks mam
ReplyDeleteKya bola tune
DeleteKrishna Shah sisodiya
ReplyDeleteThank you too you
ReplyDeleteVa mam apne kya gaya hai mam
ReplyDeleteMam paniparat ko hath chuo nhai wali line mein kaunsa alankar hai
ReplyDeleteअतिशयोक्ति,और अनुप्रास,
DeleteMAM BAHUT ACHCHHA LAGA
ReplyDeleteVa mam apne kya gaya hai mam
ReplyDeletewah mam
ReplyDeleteaapne to moj kar de
ReplyDelete