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अवकाश के सुखद व्यवस्थित दिन

अवकाश दैनिंदिनी 2023 * 30मई व्याख्यान विषय लेखन   *1 जून -आगरा, व्यवस्थित करण एवं घर गमन हेतु पैकिंग। *2जून-मुराधाम गृह गमन। *3जून- मथुरा गृह स्वच्छता साज सज्जा एवं आयोजन की व्यवस्था। *4जून -समय 7:15 रामचरितमानस अखंड पाठ कलश एवं दीप स्थापना। 5*जून- समय 11:,15 पर अखंड पाठ सम्पूर्ण एवं प्रसाद वितरण। *6जून- अतिथि सत्कार विश्राम एवं आध्यात्मिक विचार विमर्श कुटुम्ब प्रबोध वार्ता गोष्ठी। *7जून - कुटुम्ब बृज भ्रमण। *8 जून-  आथित्य, एवं विदा।शाम को 10कमजोर छात्रों से वार्ता  *9 जून- खैर अलीगढ़ जन्म दिवस परिवार बाल सभा आयोजन एवं खेल आयोजन। *11-12-13जून-गोकुला जाट उपन्यास अध्ययन। *14जून आगरा आगमन। 8 मेधावी छात्रो से वार्ता। *15*जून बीएड परीक्षा अभ्यर्थी के साथ ,एवं आगरा किला भ्रमण। *16-जून-अलीगढ प्रवास। *17जून- दार्शनिक गुरु मां प्रोफेसर गंगा मिश्रा के साथ -भाग्य कर्म समाज-निर्माण नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों पर मीमांसा गोष्ठी । *18-जून दिल्ली प्रवास प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड परीक्षा। *19-जून इगलास प्रवास। *20जून- आगरा वापसी *21जून-गृह व्यवस्था स्वच्छता *22- आचार्य दैनिंदिनी ...

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

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पाठ का प्रतिपादय एवं सारांश प्रतिपादय-हास्य फिल्मों के महान अभिनेता व निर्देशक चार्ली चैप्लिन पर लिखे इस पाठ में उनकी कुछ विशेषताओं को लेखक ने बताया है। चार्ली की सबसे बड़ी विशेषता करुणा और हास्य के तत्वों का सामंजस्य है। भारत जैसे देश में सिद्धांत व रचना-दोनों स्तरों पर हास्य और करुणा के मेल की कोई परंपरा नहीं है, इसके बावजूद चार्ली चैप्लिन की लोकप्रियता यह बताती है कि कला स्वतंत्र होती है, बँधती नहीं। दुनिया में एक-से-एक हास्य कलाकार हुए, पर वे चैप्लिन की तरह हर देश, हर उम्र और हर स्तर के दर्शकों की पसंद नहीं बन पाए। इसका कारण शायद यह है कि चार्ली ही वह शख्सियत हो सकता है जिसमें सबको अपनी छवि दिखती है, वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। सारांश-महान अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैप्लिन की जन्मशती मनाई गई। इस वर्ष उनकी फ़िल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के भी 75 वर्ष पूरे होते हैं। इतने लंबे समय से चार्ली दुनिया को मुग्ध कर रहा है। आज इसका प्रसार विकासशील देशों में भी हो रहा है। चार्ली की अनेक फ़िल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जो अभी तक दर्शकों तक नहीं पहुँचीं। इस तरह से चार्ली ...

पहलवान की ढोलक

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  पहलवान की ढोलक” कहानी के लेखक ‘फणीश्वर नाथ रेणु जी’ हैं। । फणीश्वर नाथ रेणु जी की कलम में अपने गाँव, अंचल एवं संस्कृति को सजीव करने की अद्भुत क्षमता है। ऐसा लगता है मानो उनकी रचना का हर एक पात्र वास्तविक जीवन ही जी रहा हो।  पात्रों एवं उसके आसपास के वातावरण का इतना सच्चा चित्रण बहुत कम देखने को मिलता है। रेणु वैसे गिने-चुने कथाकारों में से हैं जिन्होंने गद्य में भी संगीत पैदा कर दिया है, नहीं तो ढोलक की उठती-गिरती आवाज़  और पहलवान के क्रियाकलापों का ऐसा सामंजस्य दुर्लभ है। कहानी की शुरुआत में लेखक बताते हैं कि जाड़ों के मौसम में गाँव में महामारी फैली हुई थी। गांव के अधिकतर लोग मलेरिया और हैजे से ग्रस्त थे। जाडे के दिन थे और रातें एकदम काली अंधेरी व डरावनी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे रात उस गाँव के दुःख में दुःखी होकर चुपचाप आँसू बहा रही हो। टूटते तारे का उदाहरण देते हुए लेखक बताता है कि उस गाँव के दुःख को देख कर यदि कोई बाहरी व्यक्ति उस गाँव के लोगों की कुछ मदद करना भी चाहता था तो  चाह कर भी नहीं कर सकता था क्योंकि उस गाँव में फैली महामारी के कारण कोई भी अपने जीवन ...

सुदामा चरित

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              मित्रता           काव्य -पहेली  पहले भी शान थी, अब भी शान है, सचमुच ही दोस्तो , मेरा भारत महान है । आई है मुझको याद एक मित्रता की बात, जिसके समान विश्व में कोई नहीं मिशाल, राजा था एक मित्र,दूजा बहुत दरिद्र, पर मित्रता निभी कि भाई हो गया कमाल, किस्सा वहीं सुनाऊं ,सुनिए धर के ध्यान है । सचमुच ही दोस्तो मेरा भारत महान है। कवि -श्री प्रेमचंद शर्मा जिरौलिया  सुदामा चरित (नरोत्तम दास) सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह को नहिं सामा॥ द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ शीश-सिर पगा-पगडी  झगा-कुर्ता उपानह -जूते द्विज-ब्राहमण दुर्बल -कमजोर चकिसों -चकित होकर वसुधा -धरती  अभि रामा-प्रसन्नता,आराम ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल...

सुदामा चरित

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    सुदामा चरित कविता का भावार्थ सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥ द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ सुदामा चरित भावार्थ:  इस पद में कवि ने सुदामा के श्रीकृष्ण के महल के द्वार पर खड़े होकर अंदर जाने की इजाज़त मांगने का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण का द्वारपाल आकर उन्हें बताता है कि द्वार पर बिना पगड़ी, बिना जूतों के, एक कमज़ोर आदमी फटी सी धोती पहने खड़ा है। वो आश्चर्य से द्वारका को देख रहा है और अपना नाम सुदामा बताते हुए आपका पता पूछ रहा है। ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥  सुदामा चरित भावार्थ:   द्वारपाल के मुँह से सुदामा के आने का ज़िक्र सुनते ही श्रीकृष्ण दौड़कर उन्हें लेने जाते हैं। उनके पैरों के छाले, घाव और उनमें चुभे कांटे देखकर श्रीकृष्ण को कष्ट होता है, व...

भक्त कवि और राज धर्म

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                  ‌                                           सरला भारद्वाज 30/5/23        भक्ति कालीन कवि तुलसीदास,तात्कालिक स्थितियां और राजधर्म विश्लेषण- साहित्य समाज का दर्पण है ऐसा हम सभी बचपन से पढ़ते कहते और सुनते आए हैं। यह उक्ति कितनी खरी उतरती है ?यह चिंतन का विषय है। दर्पण में वैसा ही दिखता है ,जैसा होता है। तो आज मुझे लगा क्यों ना भक्तिकालीन काव्य साहित्य के दर्पण में समाज का नैतिक, राजनीतिक, व्यवहारिक , वैज्ञानिक  पक्ष देखा जाए। विश्लेषण किया जाए कि आखिर भक्ति कालीन कवि कोरे भक्त ही थे, या भक्त होने के साथ-साथ एक सच्चे समाज सुधारक, लोक नायक, बेबाक वक्ता, राजनैतिक विश्लेषक भी थे। आइए सर्वप्रथम इन सभी बिंदुओं को एक ही ग्रंथ और कवि के रचना साहित्य में खोजने का प्रयास करते हैं। आइए सर्वप्रथम खोज करते हैं राम चरित मानस और तुलसी के कृतित्व से, जो भारतीय आचरण निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का स्रोत है ।जहां ज...