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चंद्र शेखर आजाद की मां का क्या हुआ ?क्या आप जानते हैं?

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   “अरे बुढ़िया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“  जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े व्यक्ति ने हंसते हुए कहा,  “नही चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं“ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा। उस बुजुर्ग औरत का नाम था जगरानी देवी और इन्होने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखिरी बेटा कुछ दिन पहले ही आजादी के लिए बलिदान हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनिया उसे आजाद ... जी हाँ ! चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानती है। हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी। अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माता उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीन...

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के धर्म एवं संस्कृति संबंधी विचार

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  भारतीय परंपरा के प्रतिनिधि पंडित दीनदयाल जी विश्व गुरु कहीं जाने वाली पावन भारत भूमि की ऋषि परंपरा के प्रतिनिधि स्वरूप थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का अवतरण कर्म योगी श्री कृष्ण की लीला स्थली मथुरा के फरह के समीप नगला चंद्रभान में हुआ था। भक्त कवियों की भांति आत्मश्लाघिता से रहित, आत्म विलोपी ,निरंकारी, निश्पृही , विनम्र, साधु स्वभाव वाले पंडित जी ने अपना परिचय कभी नहीं दिया। दूसरों को सम्मुख रखकर राष्ट्र सेवा में रत उनका जीवन चरित्र ही उनकी आत्मकथा है। आज जो कुछ भी हमें ज्ञात है, वह उनके साथियों संघ के कार्यकर्ताओं के संस्मरण हैं ।संस्मरण से ज्ञात परिचय की व्याख्या करना भी सूर्य को दीपक दिखाने के समान है ।उनका जीवन आदर्श ही हमारी धरोहर है ,जिसका अनुकरण करके युगों युगों तक राष्ट्र धर्म की यह अविरल धारा बहती रहेगी। राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानने वाले पंडित जी भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रबल पुजारी थे। * पंडित जी के विचार में धर्म एवं आस्था- हिंदू धर्म सनातन धर्म के अनुयाई थे पंडित जी। जिसका मूल, राष्ट्र धर्म ही था ।उनके धर्म में नीति ,मर्यादा, मानवीय अधिकार ,मूल्य ,सांस्कृतिक र...
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  इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर, रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं। पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर, ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥ दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर, 'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं। तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर, त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥ ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी, ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं। कंद मूल भोग करैं, कंद मूल भोग करैं, तीन बेर खातीं, ते वे तीन बेर खाती हैं॥ भूषन शिथिल अंग, भूषन शिथिल अंग, बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं। 'भूषन भनत सिवराज बीर तेरे त्रास, नगन जडातीं ते वे नगन जडाती हैं॥ छूटत कमान और तीर गोली बानन के, मुसकिल होति मुरचान की ओट मैं। ताही समय सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो, दावा बांधि परा हल्ला बीर भट जोट मैं॥ 'भूषन' भनत तेरी हिम्मति कहां लौं कहौं किम्मति इहां लगि है जाकी भट झोट मैं। ताव दै दै मूंछन, कंगूरन पै पांव दै दै, अरि मुख घाव दै-दै, कूदि परैं कोट मैं॥ बेद राखे बिदित, पुरान राखे सारयुत, रामनाम राख्यो अति रसना सुघर मैं। हिंदुन की चोटी, रोटी राखी हैं सिपाहिन की, कांधे मैं जनेऊ राख्यो, माला राखी कर मै...

हम दीवानों की क्या हस्ती ,भगवती शरण वर्मा

   हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले । मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले । आए बनकर उल्लास कभी, आंसू बनकर बह चले अभी सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले । किस ओर चले? मत ये पूछो, बस, चलना है इसलिए चले जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले । दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हंसे और फिर कुछ रोए छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले । हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले । अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले हम स्वयं बन्धे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले । प्रस्तुत कविता में कवि का मस्त-मौला और बेफिक्री का स्वभाव दिखाया गया है । मस्त-मौला स्वभाव का व्यक्ति जहां जाता है खुशियाँ फैलाता है। वह हर रूप में प्रसन्नता देने वाला है चाहे वह ख़ुशी हो या आँखों में आया आँसू हो। कवि ‘बहते पानी-रमते जोगी’ वाली कहावत के अनुसार एक जगह नहीं टिकते। वह कुछ यादें संसार को देकर और कुछ यादें लेकर अपने नये-नये सफर पर चलते रहते हैं। वह सुख और दुःख को समझकर एक भाव से स्वीकार करते हैं। कवि ...

हमारा ज्ञान कोष

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  ज्ञान के इस कोष को सच्चे भारतीय होने के नाते शेयर अवश्य करें। अगर आप घर पर सपरिवार के साथ हैं तो अपने बेटे एवं बेटी को अपने पोते एवं पोती को यह सब सिखाएं क्योंकि उन्हें हिंदू धर्म के विषय में ज्ञान होगा*मैकाले के बाप दादाओं के पास भी यह ज्ञान नहीं रहा होगा ।बहुत बड़ी ज्ञान की बिरासत है हमारे मनीषियों की उसे सहेजें और हस्तांतरित करें। ××××××××01 ×××× *दो लिंग :* नर और नारी । *दो पक्ष :* शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। *दो पूजा :* वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)। *दो अयन :* उत्तरायन और दक्षिणायन। *xxxxxxxxxx 02 xxxxxxxxxx* *तीन देव :* ब्रह्मा, विष्णु, शंकर। *तीन देवियाँ :* महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी। *तीन लोक :* पृथ्वी, आकाश, पाताल। *तीन गुण :* सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण। *तीन स्थिति :* ठोस, द्रव, गैस । *तीन स्तर :* प्रारंभ, मध्य, अंत। *तीन पड़ाव :* बचपन, जवानी, बुढ़ापा। *तीन रचनाएँ :* देव, दानव, मानव। *तीन अवस्था :* जागृत, मृत, बेहोशी। *तीन काल :* भूत, भविष्य, वर्तमान। *तीन नाड़ी :* इडा, पिंगला, सुषुम्ना। *तीन संध्या :* प्रात:, मध्याह्न, सायं। *तीन शक्ति :* इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्र...