बाल महाभारत पाठ21-28
प्रश्न / उत्तर
पाठ 21-प्रतिज्ञा पूर्ति
प्रश्न-1 शंख की ध्वनि को सुनकर द्रोण ने क्या शंका व्यक्त की?
उत्तर- द्रोण ने कहा-“मालूम होता है, यह तो अर्जुन ही आया है।"
प्रश्न-2 दुर्योधन ने पितामह भीष्म को संधि के संबंध में क्या कहा?
उत्तर- दुर्योधन ने कहा-"पूज्य पितामह! मैं संधि नहीं चाहता हूँ। राज्य तो दूर रहा, मैं तो एक गाँव तक पांडवों को देने के लिए तैयार नहीं हूँ ।"
प्रश्न-3 किसने किससे कहा?
“कर्ण! मूर्खता की बातें न करो। हम सबको एक साथ मिलकर अर्जुन का मुकाबला करना होगा।”
कृपाचार्य ने कर्ण से कहा ।
प्रश्न-4 कौरव-सेना को आपस में ही वाद-विवाद तथा झगड़ा करते देख भीष्म ने क्या कहा?
उत्तर – कौरव-सेना को आपस में ही वाद-विवाद तथा झगड़ा करते देख भीष्म बोले "यह आपस में बैर-विरोध या झगड़े का समय नहीं है। अभी तो सबको एक साथ मिलकर शत्रु का मुकाबला करना है।"
प्रश्न-5 रण भूमि में अर्जुन ने आचार्य द्रोण और पितामह भीष्म की कैसे वंदना की?
उत्तर – अर्जुन ने गांडीव पर चढ़ाकर दो-दो बाण आचार्य द्रोण और पितामह भीष्म की ओर इस तरह से छोड़े जो उनके चरणों में जाकर गिरे। इस प्रकार अर्जुन ने अपने बड़ों की वंदना की।
प्रश्न-6 युद्ध के पश्चात अर्जुन ने राजकुमार उत्तर से क्या कहा?
उत्तर- युद्ध के पश्चात अर्जुन ने राजकुमार उत्तर से कहा "उत्तर! अपना रथ नगर की ओर ले चलो। तुम्हारी गायें छुड़ा ली गई हैं। शत्रु भी भाग खड़े हुए हैं। इस विजय का यश तुम्हीं को मिलना चाहिए। इसलिए चंदन लगाकर और फूलों का हार पहनकर नगर में प्रवेश करना।"
प्रश्न-7 युद्ध भूमि में अर्जुन को औरत के भेष में देख कर कर्ण क्या बोला? उत्तर- कर्ण बोला-"पांडव जुए के खेल में जब हार गए थे, तो शर्त के अनुसार उन्हें बारह बरस का वनवास और एक बरस अज्ञातवास में बिताना था। अभी तेरहवाँ बरस पूरा नहीं हुआ है और अर्जुन हमारे सामने प्रकट हो | गया है, तो डर किस बात का है? शर्त के अनुसार पांडवों को फिर से बारह बरस वनवास और एक बरस अज्ञातवास में बिताना होगा।"
प्रश्न-8 अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर - भीष्म दुर्योधन से फिर बोले-"बेटा दुर्योधन, अर्जुन प्रकट हो गया, वह ठीक है। पर प्रतिज्ञा का समय कल ही पूरा हो चुका है। प्रत्येक वर्ष में एक जैसे महीने नहीं होते। जैसे ही अर्जुन ने गांडीव धनुष की टंकार की थी, मैं समझ गया था कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई है। दुर्योधन! युद्ध शुरू करने से पहले इस बात का निश्चय कर लेना होगा कि पांडवों के साथ संधि कर लें या नहीं। यदि संधि करने की इच्छा है, तो उसके लिए अभी समय है।”
प्रश्न-9 अर्जुन ने रणभूमि में पांचों महारथी को किस प्रकार परास्त किया?
उत्तर- अर्जुन को दुर्योधन का पीछा करते देखकर भीष्म आदि सेना लेकर अर्जुन का पीछा करने लगे। अर्जुन ने उस समय अद्भुत रण-कौशल का परिचय दिया। पहले तो उसने कर्ण पर हमला करके उसे बुरी तरह से घायल करके मैदान से भगा दिया। इसके बाद द्रोणाचार्य की बुरी गत होते देखकर अश्वत्थामा आगे बढ़ा और अर्जुन पर बाण बरसाने लगा। मौका पाकर आचार्य जल्दी से खिसक गए। उनके चले जाने के बाद अर्जुन अब अश्वत्थामा पर टूट पड़ा। दोनों में भयानक युद्ध होता रहा। अंत में अश्वत्थामा को हार माननी पड़ी। उसके बाद कृपाचार्य की बारी आई और वह भी हार गए। इस प्रकार अर्जुन ने रणभूमि में पांचों महारथी को परास्त कर दिया।
प्रश्न-8 अर्जुन के प्रकट हो जाने पर भीष्म ने दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर - भीष्म दुर्योधन से फिर बोले-"बेटा दुर्योधन, अर्जुन प्रकट हो गया, वह ठीक है। पर प्रतिज्ञा का समय कल ही पूरा हो चुका है। प्रत्येक वर्ष में एक जैसे महीने नहीं होते। जैसे ही अर्जुन ने गांडीव धनुष की टंकार की थी, मैं समझ गया था कि प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो गई है। दुर्योधन! युद्ध शुरू करने से पहले इस बात का निश्चय कर लेना होगा कि पांडवों के साथ संधि कर लें या नहीं। यदि संधि करने की इच्छा है, तो उसके लिए अभी समय है।”
प्रश्न-9 अर्जुन ने रणभूमि में पांचों महारथी को किस प्रकार परास्त किया?
उत्तर- अर्जुन को दुर्योधन का पीछा करते देखकर भीष्म आदि सेना लेकर अर्जुन का पीछा करने लगे। अर्जुन ने उस समय अद्भुत रण-कौशल का परिचय दिया। पहले तो उसने कर्ण पर हमला करके उसे बुरी तरह से घायल करके मैदान से भगा दिया। इसके बाद द्रोणाचार्य की बुरी गत होते देखकर अश्वत्थामा आगे बढ़ा और अर्जुन पर बाण बरसाने लगा। मौका पाकर आचार्य जल्दी से खिसक गए। उनके चले जाने के बाद अर्जुन अब अश्वत्थामा पर टूट पड़ा। दोनों में भयानक युद्ध होता रहा। अंत में अश्वत्थामा को हार माननी पड़ी। उसके बाद कृपाचार्य की बारी आई और वह भी हार गए। इस प्रकार अर्जुन ने रणभूमि में पांचों महारथी को परास्त कर दिया।
प्रश्न / उत्तर
पाठ 22-विराट का भ्रम
प्रश्न-1 राजकुमार उत्तर को अर्जुन से कंक के बारे में क्या मालूम हो चुका था?
उत्तर – राजकुमार उत्तर को अर्जुन से मालूम हो चुका था कि कंक तो असल में युधिष्ठिर ही हैं।
प्रश्न-2 राजकुमार उत्तर के बारे में राजा विराट को क्या भ्रम हुआ?
उत्तर – राजकुमार उत्तर के बारे में राजा विराट को भ्रम हुआ कि विख्यात कौरव-वीरों को उनके बेटे ने अकेले ही लड़कर जीत लिया!
प्रश्न-3 कंक के मुख से खून बहता देखकर राजकुमार उत्तर क्यों चकित रह गया?
उत्तर - कंक के मुख से खून बहता देखकर राजकुमार उत्तर चकित रह गया क्योंकि उसे अर्जुन से मालूम हो चुका था कि कंक तो असल में युधिष्ठिर ही हैं।
प्रश्न-4 अंत:पुर में राजकुमार उत्तर को न पाकर जब राजा ने पूछताछ की तो उन्हें क्या पता चला?
उत्तर- अंत:पुर में राजकुमार उत्तर को न पाकर राजा ने पूछताछ की तो स्त्रियों ने बड़े उत्साह के साथ बताया कि कुमार कौरवों से लड़ने गए हैं।
प्रश्न-5 राजा विराट को शोकातुर होते देखकर कंक ने उन्हें दिलासा देते हुए क्या कहा?
उत्तर- राजा को इस प्रकार शोकातुर होते देखकर कंक ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा-" आप राजकुमार की चिंता न करें। बृहन्नला सारथी बनकर उनके साथ गई हुई है।"
प्रश्न-6 पुत्र की विजय हुई, यह जानकर विराट को कैसा लगा?
उत्तर - पुत्र की विजय हुई, यह जानकर विराट, आनंद और अभिमान के मारे फूले न समाए। उन्होंने दूतों को असंख्य रत्न एवं धन पुरस्कार के रूप में देकर खूब आनंद मनाया।
प्रश्न-7 युधिष्ठिर (कंक) द्वारा बार - बार बृहन्नला की चर्चा का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर – युधिष्ठिर (कंक) द्वारा बार - बार बृहन्नला की चर्चा सुनकर विराट झुंझला गए और क्रोध में अपने हाथ का पासा युधिष्ठिर (कंक) के मुँह पर दे मारा। पासे की मार से युधिष्ठिर के मुख पर चोट लग गई और खून बहने लगा।
प्रश्न-8 कंक के मुख से खून बहता देखकर राजकुमार उत्तर ने क्या किया?
उत्तर- कंक के मुख से खून बहता देखकर राजकुमार उत्तर चकित रह गया। उसे अर्जुन से मालूम हो चुका था कि कंक तो असल में युधिष्ठिर ही हैं। उसने क्रोध में पूछा- पिता जी, इनको किसने यह पीड़ा पहुँचाई है?" पिता की बात सुनकर उत्तर काँप गया। उत्तर के आग्रह करने पर उन्होंने कंक के पाँव पकड़कर क्षमा याचना की।
प्रश्न-9 युधिष्ठिर ने दूतगण को प्रतिज्ञा की अवधि पूरी होने के विषय में क्या कहा?
उत्तर- युधिष्ठिर ने कहा -"दूतगण शीघ्र ही वापस जाकर दुर्योधन को कहो कि वह पितामह भीष्म और जानकारों से पूछकर इस बात का निश्चय करे कि अर्जुन जब प्रकट हुआ था, तब प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो चुकी थी या नहीं। मेरा यह दावा है कि तैरहवाँ बरस पूरा होने के बाद ही अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी।"
प्रश्न-10 जब अर्जुन ने सभी को अपना असली परिचय दिया तब लोगों की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर- जब अर्जुन ने पहले राजा विराट को और बाद में सारी सभा को अपना असली परिचय दिया तब लोगों के आश्चर्य और आनंद का ठिकाना न रहा। सभा में कोलाहल मच गया। राजा विराट का हृदय कृतज्ञता, आनंद और आश्चर्य से तराँगत हो उठा। विराट ने कुछ सोचने के बाद अर्जुन से आग्रह किया कि वो राजकन्या उत्तरा से ब्याह कर लें।
प्रश्न-11 किसने किससे कहा?
i. “आप राजकुमार की चिंता न करें। बृहन्नला सारथी बनकर उनके साथ गई हुई है।”
कंक ने राजा विराट से कहा ।
ii. “देखा राजकुमार का शौर्य? विख्यात कौरव-वीरों को मेरे बेटे ने अकेले ही लड़कर जीत लिया!”
राजा विराट ने कंक से कहा ।
iii. “नि:संदेह आपके पुत्र भाग्यवान हैं, नहीं तो बृहन्नला उनकी सारथी बनती ही कैसे?”
कंक ने राजा विराट से कहा ।
iv. “कौन था वह वीर? क
हाँ है वह? बुला लाओ उसे।”
राजा विराट ने राजकुमार उत्तर से कहा ।
पाठ23-मंत्रणा-
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-1 अभिमन्यु का विवाह किसके साथ किया गया?
उत्तर- अभिमन्यु का विवाह उत्तरा के साथ किया गया।
प्रश्न-2 दुर्योधन और अर्जुन किस कारण श्रीकृष्ण के पास गए थे?
उत्तर - दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही श्रीकृष्ण के पास उनसे प्रार्थना करने गए थे कि वो उनकी युद्ध में सहायता करें।
प्रश्न-3 तेरहवाँ बरस पूरा होने पर पांडव कहाँ जाकर रहने लगे?
उत्तर – तेरहवाँ बरस पूरा होने पर पांडव विराट की राजधानी छोड़कर विराटराज के ही राज्य में स्थित 'उपप्लव्य' नामक नगर में जाकर रहने लगे।
प्रश्न-4 श्रीकृष्ण किन लोगों को लेकर उपप्लव्य जा पहुँचे?
उत्तर – भाई बलराम, अर्जुन की पत्नी सुभद्रा तथा पुत्र अभिमन्यु और यदुवंश के कई वीरों को लेकर श्रीकृष्ण उपप्लव्य जा पहुँचे।
प्रश्न-5 श्रीकृष्ण की नींद खुली तो उन्होंने पहले सामने किसे देखा और क्यों?
उत्तर- श्रीकृष्ण की नींद खुली तो उन्होंने पहले सामने अर्जुन को देखा क्योंकि दुर्योधन श्रीकृष्ण के सिरहाने एक ऊचे आसन पर बैठा था और अर्जुन श्रीकृष्ण के पैताने ही हाथ जोड़े खड़े थे ।
प्रश्न-6 यदुकुल का वीर और पांडवों का हितैषी सात्यकि आगबबूला क्यों हो उठा?
उत्तर- बलराम के कहने का सार यह था कि युधिष्ठिर ने जान-बूझकर अपनी इच्छा से जुआ खेलकर राज्य गंवाया था। उनकी इन बातों से यदुकुल का वीर और पांडवों का हितैषी सात्यकि आगबबूला हो उठा।
प्रश्न-7 कौन - कौन से राजा अपनी सेनाओं को साथ लेकर पांडवों की सहायता के लिए आए थे?
उत्तर - इंद्रसेन, काशिराज, वीर शैव्य अपनी दो अक्षौहिणी सेना के साथ, पांचालराज द्रुपद तीन अक्षौहिणी सेना के साथ आए। शिखंडी, द्रौपदी का भाई धृष्टद्युम्न और द्रौपदी के पुत्र और भी कितने ही राजा अपनी-अपनी सेनाओं को साथ लेकर पांडवों की सहायता के लिए आए।
प्रश्न-8 श्रीकृष्ण की बातों को सुनने के बाद बलराम सभा में क्या बोले?
उत्तर- बलराम उठे और बोले-"कृष्ण ने जो सलाह दी है, वह मुझे न्यायोचित लगती है। आप लोग जानते ही हैं कि कुंती के पुत्रों को आधा राज्य मिला था। वे उसे जुए में हार गए। अब वे उसे फिर से प्राप्त करना चाहते हैं। यदि शांतिपूर्ण ढंग से, बिना युद्ध किए ही वे अपना राज्य प्राप्त कर सकें, तो उससे न केवल पांडवों बल्कि दुर्योधन तथा सारी प्रजा की भलाई ही होगी।”
प्रश्न-9 सभा में उपस्थित लोगों से श्रीकृष्ण ने क्या कहा?
उत्तर – श्रीकृष्ण ने कहा "सम्माननीय बंधुओ और मित्रो! आज हम सब यहाँ इसलिए इकट्टे हुए हैं कि कुछ ऐसे उपाय सोचें, जो युधिष्ठिर और राजा दुर्योधन के लिए लाभप्रद हों, न्यायोचित हों और जिनसे पांडवों तथा कौरवों का सुयश बढ़े। जो राज्य युधिष्ठिर से छीना गया है वह उनको वापस मिल जाए, तो पांडव शांत हो जाएँगे और दोनों में संधि हो सकती है। मेरी राय में इस बारे में दुर्योधन के साथ उचित रीति से बातचीत करके उसे समझाने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को
दूत बनाकर भेजना होगा, जो सर्वथा योग्य हो।”
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-1 किसने किससे कहा?
“"आप शस्त्र उठाएँ या न उठाएँ, आप चाहे लड़ें या न लड़े, मैं तो आपको ही चाहता हूँ।"”
अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा ।
प्रश्न-2 अर्जुन ने सेना-बल के बजाए नि:शस्त्र श्रीकृष्ण को क्यों पसंद किया?
उत्तर - अर्जुन ने सेना-बल के बजाए नि:शस्त्र श्रीकृष्ण को इसलिए पसंद किया क्योंकि वह जानते थे की श्रीकृष्ण वह शक्ति है जो की अकेले ही इन तमाम राजाओं से लड़कर इन्हें कुचल सकते हैं।"
प्रश्न-3 श्रीकृष्ण से मिलने के बाद दुर्योधन किस बात के लिए आनंदित हो रहा था?
उत्तर- श्रीकृष्ण से मिलने के बाद दुर्योधन आनंदित हो रहा था क्योंकि उसे लगा कि अर्जुन ने खूब धोखा खाया और श्रीकृष्ण की वह लाखों वीरोंवाली भारी-भरकम सेना सहज में ही उसके हाथ आ गई।
प्रश्न-4 बलराम ने युद्ध में तटस्थ रहने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर- बलराम ने कहा है कि जिधर कृष्ण न हो, उस तरफ़ उनका रहना ठीक नहीं है और अर्जुन की सहायता वह करेंगें नहीं, इस कारण वह अब दुर्योधन की भी सहायता करने योग्य नहीं रहे। इसलिए उनका तटस्थ रहना ही ठीक है।
प्रश्न-5 श्रीकृष्ण ने अर्जुन से सहायता करने के विषय में क्या कहा?
उत्तर- श्रीकृष्ण ने अर्जुन से बोले "मेरी सेना एक तरफ़ होगी। दूसरी तरफ़ अकेला मैं रहूँगा। मेरी प्रतिज्ञा यह भी है कि युद्ध में मैं न तो हथियार उठाऊँगा और न ही लड़ूँगा । तुम भली-भाँति सोच लो, तब निर्णय करो। इन दो में से जो पसंद हो, वह ले लो।"
प्रश्न-6 राजा शल्य कौन थे और उन्होंने पांडवों की सहायता के लिए क्या किया?
उत्तर- मद्र देश के राजा शल्य, नकुल-सहदेव की माँ माद्री के भाई थे। जब उन्हें यह खबर मिली कि पांडव उपप्लव्य के नगर में युद्ध की तैयारियाँ कर रहे हैं, तो उन्होंने एक भारी सेना इकट्ठी की और उसे लेकर पांडवों की सहायता के लिए उपप्लव्य की ओर रवाना हो गए।
प्रश्न-7 युधिष्ठिर ने राजा शल्य से क्या प्रश्न किया?
उत्तर - युधिष्ठिर बोला-“मामा जी! मौका आने पर निश्चय ही महाबली कर्ण आपको अपना सारथी बनाकर अर्जुन का वध करने का प्रयत्न करेगा। मैं यह जानना चाहता है कि उस समय आप | अर्जुन की मृत्यु का कारण बनेंगे या अर्जुन को रक्षा का प्रयत्न करेंगे?"
प्रश्न-8 मद्रराज शल्य ने महाराज युधिष्ठिर और द्रौपदी को क्या कह कर दिलासा दिया?
उत्तर – महाराज युधिष्ठिर और द्रौपदी को मद्रराज शल्य ने दिलासा दिया और कहा "जीत उन्हीं की होती है, जो धीरज से काम लेते हैं। युधिष्ठिर! कर्ण और दुर्योधन की बुद्धि फिर गई है। अपनी दुष्टता के फलस्वरूप निश्चय ही उनका सर्वनाश होकर रहेगा।”
प्रश्न-9 दुर्योधन ने राजा शल्य को किस प्रकार अपने पक्ष में किया?
उत्तर – जब दुर्योधन ने सुना कि राजा शल्य विशाल सेना लेकर पांडवों की सहायता के लिए जा रहे हैं, तो उसने किसी प्रकार इस सेना को अपनी ओर कर लेने का निश्चय कर लिया। अपने कुशल कर्मचारियों को उसने आज्ञा दी कि रास्ते में जहाँ कहीं भी राजा शल्य और उनकी सेना डेरा डाले, उसे हर तरह की सुविधा पहुँचाई जाए। शल्य पर दुर्योधन के आदर-सत्कार का कुछ ऐसा असर हुआ कि उन्होंने पुत्रों के समान प्यार करने योग्य भानजों (पांडवों) को छोड़ दिया और दुर्योधन के
पक्ष में रहकर युद्ध करने का वचन दे दिया।
। पाठ 24 संजय और राजदूत -
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-1 भीष्म ने युधिष्ठिर के संधि प्रस्ताव को सुनकर क्या सलाह दी?
उत्तर - भीष्म ने सलाह दी कि पांडवों को उनका राज्य वापस देना ही न्यायोचित होगा।
प्रश्न-2 संधि प्रस्ताव के विषय में अंत में धृतराष्ट्र ने क्या निश्चय किया?
उत्तर- सारे संसार की भलाई को ध्यान में रखकर धृतराष्ट्र ने अपनी तरफ़ से संजय को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजने का निश्चय किया।
प्रश्न-3 युधिष्ठिर ने संजय द्वारा धृतराष्ट्र को क्या संदेश भेजा?
उत्तर- युधिष्ठिर ने संजय द्वारा धृतराष्ट्र को संदेश भेजा कि "कम-से-कम हमें पाँच गाँव ही दे दें। हम पाँचों भाई इसी से संतोष कर लेंगे और संधि करने को तैयार होंगे।"
प्रश्न-4 धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को संधि के विषय में क्या समझाया?
उत्तर- धृतराष्ट्र ने संतप्त होकर दुर्योधन को समझाया-"बेटा, भीष्म पितामह जो कहते हैं, वही करने योग्य है। युद्ध न होने दो। संधि करना ही उचित है।"
प्रश्न-5 श्रीकृष्ण स्वयं हस्तिनापुर क्यों जाना चाहते थे?
उत्तर – श्रीकृष्ण स्वयं हस्तिनापुर जाकर शांति स्थापित करने का प्रयास करना चाहते थे जिससे कि किसी के यह कहने की गुंजाइश ही न रहे कि उन्होंने शांति स्थापित करने का प्रयास नहीं किया।
प्रश्न-6 धृतराष्ट्र ने संजय को बुलाकर क्या कहा?
उत्तर- धृतराष्ट्र ने संजय को बुलाकर कहा "संजय, तुम पांडु-पुत्रों के पास जाओ। वहाँ श्रीकृष्ण, सात्यकि, विराट आदि राजाओं से भी कहना कि मैंने सप्रेम उन सबकी कुशल पूछी है। वहाँ जाकर मेरी ओर से युद्ध न होने की चेष्टा करो।"
प्रश्न-7 कर्ण ने संधि के प्रस्ताव के संदर्भ में क्या बोला?
उत्तर – कर्ण बड़े क्रोध के साथ बोला-"तेरहवाँ बरस पूरा होने से पहले ही उन्होंने प्रतिज्ञा भंग करके अपने आपको प्रकट कर दिया है। इसलिए शर्त के अनुसार उनको फिर से बारह बरस के लिए वनवास भोगना पड़ेगा।"
प्रश्न-8 पांडवों और कौरवों ने अपनी सेना किस प्रकार इकठ्ठी की?
उत्तर – उपप्लव्य नगर में रहते हुए पांडवों ने अपने मित्र राजाओं को दूतों द्वारा संदेश भेजकर कोई सात अक्षौहिणी सेना एकत्र की। उधर कौरवों ने भी अपने मित्रों द्वारा काफ़ी बड़ी सेना इकट्ठी कर ली, जो ग्यारह अक्षौहिणी तक हो गई थी।
प्रश्न-9 संधि प्रस्ताव के प्रति कर्ण की राय को सुनकर भीष्म क्या बोले?
उत्तर - भीष्म बोले-“राधा-पुत्र! तुम बेकार की बातें कर रहे हो। यदि हम युधिष्ठिर के दूत के कहे अनुसार संधि नहीं करेंगे, तो निश्चय ही युद्ध छिड़ जाएगा और उसमें दुर्योधन आदि सबको पराजित होकर मृत्यु के मुँह में जाना पड़ेगा।"
प्रश्न-10 युधिष्ठिर ने किसे दूत बनाकर भेजा और उसने धृतराष्ट्र से क्या कहा?
उत्तर- युधिष्ठिर ने पांचाल नरेश के पुरोहित को दूत बनाकर भेजा। वह पांडवों की ओर से संधि का प्रस्ताव करते हुए बोले-"युधिष्ठिर का विचार है कि युद्ध से संसार का नाश ही होगा और इसी कारण वे युद्ध से घृणा करते हैं। वे लड़ना नहीं चाहते। इसलिए न्याय तथा पहले के समझौते के अनुसार यह उचित होगा कि आप उनका हिस्सा देने की कृपा करें। इसमें विलंब न कीजिए।"
प्रश्न-11 किसने किससे कहा?
i. “मैं तो सुई की नोंक के बराबर भूमि भी पांडवों को नहीं देना चाहता हूँ।”
दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से कहा ।
ii. “बेटा, भीष्म पितामह जो कहते हैं, वही करने योग्य है।”
धृतराष्ट्र ने दुर्योधन से कहा ।
iii. “धर्मपुत्र! मैं दुर्योधन से भली-भाँति परिचित हूँ। फिर भी हमें प्रयत्न करना ही चाहिए।”
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा ।
iv. “बेटा, जब पाँच गाँव देने से ही युद्ध टलता है, तो बाज़ आओ युद्ध से।”
धृतराष्ट्र ने दुर्योधन से कहा।
प्रश्न / उत्तर
पाठ 25.शांति दूत श्री कृष्ण
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-1 कर्ण रोज संध्या-वंदन कहाँ किया करता था?
उत्तर- कर्ण गंगा के किनारे रोज संध्या-वंदन किया करता था।
प्रश्न-2 कर्ण की बातें सुनकर कुंती की क्या दशा हुई?
उत्तर – कर्ण की सारी बातें सुनकर माता कुंती का मन बहुत विचलित हुआ, परंतु उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया और आशीर्वाद देकर कुंती अपने महल में चली आई।
प्रश्न-3 धृतराष्ट्र ने गांधारी को सभा में लाने को क्यों कहा?
उत्तर – धृतराष्ट्र ने गांधारी को सभा में लाने को इसलिए कहा क्योंकि धृतराष्ट्र जानते थे कि गांधारी समझ बहुत स्पष्ट है और वह दूर की सोच सकती है। हो सकता है, उसकी बातें दुर्योधन मान ले।
प्रश्न-4 कर्ण ने कुंती को क्या आश्वासन दिया?
उत्तर - कर्ण ने कुंती को आश्वासन देते हुए कहा "अब मैं यह करूंगा कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। या तो अर्जुन इस युद्ध में काम आएगा, या मैं। दोनों में से एक को तो मरना ही पड़ेगा। शेष चारों पांडव मुझे चाहे कितना भी तंग करें, मैं उनको नहीं मारूंगा। माँ, तुम्हारे तो पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे, चाहे मैं मर जाऊँ, चाहे अर्जुन। हम दोनों में से एक बचेगा और बाकी चार तो रहेंगें ही। तुम चिंता न करो।
प्रश्न-5 कुंती ने कर्ण से क्या कहा?
उत्तर- कुंती ने गद्गद् स्वर में कहा “कर्ण! यह न समझो कि तुम केवल सूत-पुत्र ही हो। न तो राधा तुम्हारी माँ है, न अधिरथ तुम्हारे पिता। तुम राजकुमारी पृथा की कोख से उत्पन्न हुए हो। तुम सूर्य के अंश हो। दुर्योधन के पक्ष में होकर तुम अपने भाइयों से ही शत्रुता कर रहे हो। धृतराष्ट्र के लड़कों के आश्रित रहना तुम्हारे लिए अपमान की बात है। तुम अर्जुन के साथ मिल जाओ, वीरता से लड़ो और राज्य प्राप्त करो। वे भी तुम्हारे अधीन रहेंगे और तुम उनसे घिरे हुए प्रकाशमान होओगे।"
प्रश्न-6 कर्ण ने कुंती से क्या कहा?
उत्तर- कर्ण ने कुंती से क्या कहा- "माँ! यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ़ चला गया, तो लोग मुझे ही कायर कहेंगे। अब, जब युद्ध होना निश्चित हो गया है, तो मैं उनको मझधार में कैसे छोड़ जाऊँ? आज मेरा कर्तव्य यही है कि मैं पांडवों के विरुद्ध सारी शक्ति लगाकर लड़ूँ । लेकिन हाँ, तुम्हारी भी बात एकदम व्यर्थ नहीं जाएगी। अब मैं यह करूंगा कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। या तो अर्जुन इस युद्ध में काम आएगा, या मैं।
प्रश्न-1 पहले श्रीकृष्ण किसके भवन में गए?
उत्तर – पहले श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र के भवन में गए।
प्रश्न-2 श्रीकृष्ण हस्तिनापुर किस उद्देश्य से गए?
उत्तर - शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण हस्तिनापुर गए।
प्रश्न-3 धृतराष्ट्र से मिलने के बाद श्रीकृष्ण किससे मिलने गए?
उत्तर – धृतराष्ट्र से विदा लेकर श्रीकृष्ण विदुर के भवन में गए। कुंती वहीं कृष्ण की प्रतीक्षा में बैठी थी।
प्रश्न-4 श्रीकृष्ण को ठहराने का प्रबंध कहाँ किया गया और क्यों?
उत्तर- दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से अधिक ऊँचा और सुंदर था। इसलिए धृतराष्ट्र ने आज्ञा दी कि उसी भवन में श्रीकृष्ण को ठहराने का प्रबंध किया जाए।
प्रश्न-5 दुर्योधन ने जब श्रीकृष्ण को भोजन का न्यौता दिया तो उन्होंने क्या कहा?
उत्तर- दुर्योधन ने श्रीकृष्ण का शानदार स्वागत किया और उचित आदर-सत्कार करके भोजन का न्यौता दिया तब श्रीकृष्ण ने कहा-“राजन्! जिस उद्देश्य को लेकर मैं यहाँ आया हूँ वह पूरा हो जाए, तब मुझे भोजन का न्यौता देना उचित होगा।"
प्रश्न-6 विदुर की दृष्टि में श्रीकृष्ण का सभा में जाना क्यों उचित नहीं था?
उत्तर- विदुर की दृष्टि में श्रीकृष्ण का सभा में जाना इसलिए उचित नहीं था क्योंकि दुर्योधनादि के स्वभाव से जो भी परिचित थे, उनका भी यही कहना था कि वे लोग कोई-न-कोई कुचक्र रचकर श्रीकृष्ण के प्राणों तक को हानि पहुँचाने की चेष्टा करेंगे।
प्रश्न-7 श्रीकृष्ण ने सभा में धृतराष्ट्र के सामने क्या प्रस्ताव रखा?
उत्तर – वह धृतराष्ट्र की ओर देखकर बोले-"राजन्! पांडव शांतिप्रिय हैं, परंतु साथ ही यह भी समझ लीजिए कि वे युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें, जिससे आप भाग्यशाली बनें।"
प्रश्न-8 श्रीकृष्ण को दुर्योधन के किस बात पर हँसी आ गई और तब उन्होंने क्या किया?
उत्तर - दुर्योधन ने अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने की जो चेष्टा की थी, उससे श्रीकृष्ण को हँसी आ गई। तभी श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को उन सब अत्याचारों का विस्तार से स्मरण दिलाया, जो उसने पांडवों पर किए थे।
प्रश्न-9 श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को क्या समझाते हुए क्या कहा?
उत्तर- श्रीकृष्ण दुर्योधन से बोले-"मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि पांडवों को आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ संधि कर लो। यदि यह बात स्वीकृत हो गई, तो स्वयं पांडव तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।"
प्रश्न-10 किसने किससे कहा?
i. “भाई, मालूम होता है, ये लोग आपको कैद करके कहीं पांडवों के हवाले न कर दें।”
दु:शासन ने दुर्योधन से कहा ।
ii. “सभासदो! मैं भी वही चाहता हूँ, जो श्रीकृष्ण को प्रिय है।”
धृतराष्ट्र ने श्रीकृष्ण से कहा ।
iii. “मेरे प्राणों की चिंता आप न करें।”
श्रीकृष्ण ने विदुर से कहा ।
iv. “उनकी सभा में आपका जाना भी उचित नहीं है।”
विदुर ने श्रीकृष्ण से कहा।
पाठ26.-युद्ध में कौरवों का सेनापति
प्रश्न-9 रुक्मी को अपमानित होकर भोजकट क्यों लौटना पड़ा?
उत्तर – कुरुक्षेत्र में होनेवाले युद्ध के समाचार सुनकर रुक्मी ने सोचा कि यह अवसर वासुदेव की मित्रता प्राप्त कर लेने के लिए ठीक होगा। इसलिए वह पांडवों के पास उनकी सहायता का प्रस्ताव ले कर गए। इस पर अर्जुन ने रुक्मी से बोला "राजन्! आप बिना शर्त के सहायता करना चाहते हैं, तो आपका स्वागत है। नहीं तो आपकी जैसी इच्छा।" यह सुनकर रुक्मी क्रोध में अपनी सेना लेकर दुर्योधन के पास गया और उससे कहा "पांडव मेरी मदद नहीं चाहते हैं। इस कारण मैं आपकी सहायता हेतु आया हूँ।" परन्तु दुर्योधन ने कहा "पांडवों ने जिसकी सहायता स्वीकार नहीं की, हमें उसकी सहायता स्वीकार करने की ज़रूरत नहीं है।" इस प्रकार रुक्मी दोनों तरफ़ से अपमानित होकर भोजकट वापस लौट गए
पाठ-27*पांडवों के सेनापति
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-1 कर्ण की मृत्यु कब हुई?
उत्तर – सत्रहवें दिन की लड़ाई में कर्ण की मृत्यु हो गई।
प्रश्न-2 द्रोणाचार्य के बाद किसे सेनापति बनाया गया?
उत्तर- द्रोणाचार्य के बाद कर्ण को सेनापति बनाया गया।
प्रश्न-3 महाभारत का युद्ध कुल कितने दिन तक चला?
उत्तर- महाभारत का युद्ध कुल अट्ठारह दिन तक चला।
प्रश्न-4 भीष्म के नेतृत्व में कौरव-वीरों ने कितने दिन तक युद्ध किया?
उत्तर - भीष्म के नेतृत्व में कौरव-वीरों ने दस दिन तक युद्ध किया।
प्रश्न-5 कर्ण की मृत्यु के बाद किसने सेनापति बनकर सेना का संचालन किया?
उत्तर- कर्ण की मृत्यु के बाद शल्य ने कौरवों का सेनापति बनकर सेना का संचालन किया।
प्रश्न-6 अर्जुन के भ्रम को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में क्या किया?
उत्तर– अर्जुन के भ्रम को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में कर्मयोग का उपदेश दिया।
प्रश्न-7 भीष्म कब आहत हुए और उनके बाद सेनापति किसे नियुक्त किया गया?
उत्तर- दस दिन के युद्ध के बाद भीष्म आहत हुए और उनके बाद द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त किया गया।
प्रश्न-8 युधिष्ठिर युद्ध शुरू होने के पहले क्यों अपने रथ से उतरे?
उत्तर – युधिष्ठिर युद्ध शुरू होने के पहले अपने रथ से बड़ो की आज्ञा लेने के लिए उतरे क्योंकि बिना बड़ों की आज्ञा लिए युद्ध करना अनुचित माना जाता है।
प्रश्न-9 भीम ने युधिष्ठिर के सामने अपनी क्या विवशता व्यक्त की?
उत्तर – भीष्म बोले-"बेटा युधिष्ठिर, मुझे तुमसे यही आशा थी। मैं स्वतंत्र नहीं हूँ। विवश होकर मुझे तुम्हारे विपक्ष में रहना पड़ रहा है। फिर भी मेरी यही कामना है कि रण में विजय तुम्हारी हो।"
प्रश्न-10 युद्धक्षेत्र में क्या देख कर दोनों ही पक्षवाले अचंभे में पड़ गए?
उत्तर – एकाएक पांडव-सेना के बीच में हलचल मच गई। युधिष्ठिर ने अचानक अपना कवच और धनुष-बाण उतारकर रथ पर रख दिया और रथ से उतरकर हाथ जोड़े कौरव-सेना की हथियारबंद पॉक्तियों को चीरते हुए भीष्म की ओर पैदल जा रहे थे। बिना सूचना दिए उनको इस प्रकार जाते देखकर दोनों ही पक्षवाले अचंभे में पड़ गए।
पाठ28-युद्ध का पहला दूसरा तीसरा दिन
प्रश्न / उत्तर
प्रश्न-1 कौरव-सेना में कौन से वीर अर्जुन का मुकाबला कर सकते थे?
उत्तर - सारी कौरव-सेना में तीन ही ऐसे वीर थे, जो अर्जुन का मुकाबला कर सकते थे- भीष्म, द्रोण और कर्ण।
प्रश्न-2 युद्ध के समय पांडवों और कौरवों की सेना के अग्रभाग में कौन रहा करते थे?
उत्तर - कौरवों की सेना के अग्रभाग पर प्रायः दु:शासन ही रहा करता था और पांडवों की सेना के आगे भीमसेन।
प्रश्न-3 पहले दिन की लड़ाई में हुई दुर्गति से पांडवों ने क्या सबक लिया?
उत्तर- पहले दिन की लड़ाई में पांडव-सेना की जो दुर्गति हुई थी, उससे सबक लेकर पांडव-सेना के नायक धृष्टद्युम्न ने दूसरे दिन बड़ी सतर्कता के साथ व्यूह-रचना की और सैनिकों का साहस बँधाया।
प्रश्न-4 आप कैसे कह सकते हैं कि इस युद्ध में संबंधो का कोई मूल्य नहीं रह गया था?
उत्तर – बाप ने बेटे को मारा। बेटे ने पिता के प्राण लिए। भानजे ने मामा का वध किया। मामा ने भानजे का काम तमाम किया। युद्ध का यह दृश्य पुष्टि करता है कि इस युद्ध में संबंधो का कोई मूल्य नहीं रह गया था।
प्रश्न-5 पहले दिन की लड़ाई में पांडवों की क्या स्तिथि रही?
उत्तर- पहले दिन की लड़ाई में भीष्म ने पांडवों पर ऐसा हमला किया कि पांडव-सेना थर्रा उठी। युधिष्ठिर के मन में भय छा गया। दुर्योधन आनंद के कारण झूमता हुआ दिखाई दिया। पांडव घबराहट के मारे श्रीकृष्ण के पास गए। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और पांडव-सेना का धीरज बँधाया।
प्रश्न-6 तीसरे दिन की लड़ाई में कौरवों की क्या स्तिथि रही?
उत्तर – भीमसेन द्वारा चलाए एक बाण से दुर्योधन जोर का धक्का खाकर बेहोश हो गया और रथ पर गिर पड़ा। यह देखकर उसके सारथी ने दुर्योधन को लड़ाई के मैदान हटाकर छावनी की ओर ले गया। अनुशासन के टूटने से सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस बिखरी हुई सेना को फिर से इकट्ठा करके भीष्म ने पांडवों पर हमला किया परन्तु शाम होते-होते कौरव-सेना बड़ी बुरी तरह से हार गई।
प्रश्न-7 युद्ध के दूसरे दिन पांडवों ने कैसा प्रदर्शन किया?
उत्तर- अर्जुन ने इस कुशलता से युद्ध किया कि कौरव-सेना के सभी महारथी देखकर दंग रह गए। अर्जुन और भीष्म के बीच बड़ी देर तक युद्ध होता रहा फिर भी हार-जीत का कोई निर्णय न हो सका। सात्यकि द्वारा छोड़े गए एक बाण ने भीष्म के सारथी को मार गिराया। सारथी के गिर जाने पर घोड़े हवा से बातें करते हुए अत्यंत वेग से भाग खड़े हुए। इससे कौरव-सेना में बड़ी तबाही मची।
प्रश्न-8 युद्धक्षेत्र में श्रीकृष्ण को क्रोध क्यों आया और यह देखकर अर्जुन की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर- भीष्म के छोड़े गए कई बाण अर्जुन एवं श्रीकृष्ण के शरीर पर लग गए। इस पर श्रीकृष्ण को असीम क्रोध आ गया। उनसे रहा न गया। उन्होंने खुद भीष्म को मारने की ठानी। अर्जुन यह देखकर सन्न रह गया। अर्जुन के आग्रह पर श्रीकृष्ण वापस लौटकर फिर से अर्जुन का रथ हाँकने लगे। श्रीकृष्ण के इस कार्य से अर्जुन उत्तेजित हो उठा और कौरव-सेना पर वह वज्र के समान गिरा। शाम होते-होते कौरव-सेना बड़ी बुरी तरह से हार गई।
Jai shree ram
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