वंदना सभा की वैज्ञानिकता

 





*हमारी वंदना सभा है पूर्ण वैज्ञानिक

सभी विद्यालयों में अपने-अपने तरह की प्रार्थनाएं वंदनाएं होती हैं परंतु विद्या भारती की वंदना सभा की जो पद्धति है वह पूर्णतया वैज्ञानिक है व्यवहारिक है। अगर इसके वैज्ञानिक पक्ष पर विचार किया जाए तो सुखासन या पद्मासन अवस्था में वंदना की जो स्थिति है उसके पीछे शरीर विज्ञान है अध्यात्म विज्ञान है जब हम पालथी मार कर रीड की हड्डी को सीधा करके हाथ जोड़ने की स्थिति में बैठते हैं तो सीने के बीचो-बीच जो गड्ढा होता है उस गड्ढे को हाथ जोड़ने की स्थिति में जो मुद्रा बनती है दोनों अंगूठे से उसे मध्य भाग को स्पर्श किया जाता है। जहां हृदय चक्र होता है इस स्थिति में शरीर के सात चक्रों में से एक चक्र हृदय चक्र स्पंदित होता है ।पूरे शरीर का एक मंदिर जैसा आकार बनता है। पालथी मारकर सीधे बैठने पर मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, ब्रह्मांड में घूम रही सकारात्मक ऊर्जा सिर से शरीर में प्रवेश करती है। क्योंकि हम  पालथी मार बैठे होते हैं अतः यह ऊर्जा शरीर में प्रवेश तो करती है परंतु शरीर से बाहर नहीं जाने पाती ।अर्थात वंदना सभा का जो समय होता है वह एक तरह से हमारा चार्जिंग या रिचार्जिंग का समय होता है। सुबह वंदना के समय हम सकारात्मक ऊर्जा को अपने शरीर में स्टोर करते हैं ,संचय करते हैं और पूरे दिन उस ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। अतः वंदना सभा विद्यालय का प्राण तत्व मानी जाती है। इस सभा में बैठने से शरीर सुदृढ़ होता है एकाग्रता बढ़ती। है आत्म चेतना का विकास होता है। विविध क्रियाकलापों के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को  परिष्कृत परिमार्जित किया जाता है। वंदना में दीप प्रज्ज्वलन के समय दीपक की लों की तरफ एकटक देखना त्राटक प्राणायाम है। जिससे मनुष्य की नेत्र ज्योति बढ़ती है ।ध्यान लगाने की और ध्यान को एकाग्र करने की शक्ति बढ़ती है। जीवन को दीपक की ज्योति की भांति ऊर्ध्व मुखी बनाने की प्रेरणा मिलती है ।मां सरस्वती से संस्कृत और हिंदी वंदनाओं के माध्यम से अपने देश भारत को विश्व गुरु बनने लायक अपने अंदर गुण मांगे जाते हैं, साहस, शील,  त्यागतपोमय व्यक्तित्व का आशीर्वाद मांगा जाता है। इन गुणों के होने से हम अपने देश और समाज का विकास कर सकते हैं। अपना विकास कर सकते हैं। सीता, सावित्री, दुर्गा मां ,लव ,कुश ध्रुव, प्रहलाद जैसे गुणों की याचना करके  भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने का संकल्प लिया जाता है। बालकों को बोध होता है  कि व्यक्तित्व और देश निर्माण के लिए शील, शक्ति भक्ति ,  त्याग, संयम, सत्य,आदि गुणों का होना परम आवश्यक है। आत्म चेतना जागृत होती है। अतः प्रार्थना के पश्चात ओम ध्वनि का तीन बार   उच्चारण तीनों लोकों के कल्याण की कामना से किया जाता है। तत्पश्चात भारत वंदना शांति पाठ के बाद सभा विसर्जित की जाती है और सभी अपनी कक्षाओं में अध्ययन हेतु जाते हैं। वंदना सभा विद्यालय का अनिवार्य अंग है इसके साथ कोई भी समझौता नहीं करना चाहिए। यह अनवरत रूप से पिलाई जाने वाली घुट्टी है।जो बालकों के चरित्र के निर्माण में सहायक है। चरित्र ही समाज की रीढ़ होती है। जैसे रीढ़ के अभाव में शरीर निश्तेज है वैसे ही योग्य नागरिकों के अभाव में देश मृतप्राय है।

यदि कहा जाए कि विद्यालय की वंदना सभा व्यक्तित्व निर्माण की आधारशिला है तो अतिशयोक्ति न होगी।

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