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बड़े न होवै गुन बिना (बात 2017 की है)

  रहीम की ये पंक्तियां बेसाख्ता याद आ गयीं, 3 जीवन का कितना अनुभव रहा होगा कवि को कि हर युग में सटीक बैठती है ये पंक्तियां, बड़े कहलाने वाले अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाले लोग इर्द गिर्द मिल ही जायेंगे आपको। 4 ​ 5 बड़े न हूजै गुणन बिनु, 6 ​ 7 बिरदु बढ़ाई पाय। 8 ​ 9 कहत धतूरौं सौं कनक , 10 ​ 11 गहनों गढौ न जाय। 12 ​ 13 बात सात साल पहले की है स्वयं को विद्यालय और विद्यार्थियों के लिए होम कर देने का भाव भी किसी की ईर्ष्या का विषय हो सकता है ये नया अनुभव उसी वर्ष हुआ। वाकया था विद्यालय वार्षिक उत्सव का । भव्य प्रोग्राम था । सांस्कृतिक श्रंखला में पर्यावरण संरक्षण पर ईश्वर कृपा से एक महीने की नींद खोकर रात रात भर जागकर एक स्क्रिप्ट तैयार हुई,शरीर की अनदेखी करने पर बाद में तीन महीने का उपचार भी कराना पड़ा। खैर, सरस्वती कृपा से स्क्रिप्ट ऐसी बन पड़ी थी कि स्टूडियों रिकार्डिंग से लेकर राष्ट्रीय स्तर के अधिकारियों ने भूरि भूरि प्रशंसा की। मैं संकोच से गढ़ी जा रही थी, क्यों कि रिंग मास्टर बेशक मैं थी परन्तु सर्कस में पूरी विद्यालय टीम जुटी थी। मुझे अंदाजा नहीं था कि लोगों को इतनी पसं...