राम लक्ष्मण परशुराम संवाद


प्रथम पद्यांश
 चौपाई -
नाथ संभुधनु भजनिहारा।
 होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
आयेसु काह कहिय किन मोही।
 सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवक हो जो करें सेवकाई ।
अरि  करनी परि करिय लराई।।
 सुनहुं राम जेहि सिवधनु तोरा। 
सहस्रबाहु सम हो रिपु मोरा।।
 सो बिलगाइ बिहाइ समाजा।
नत  मारे जेहंइ  सब राजा।।
सुनि मुनि वचन लखन मुसकाने ।
 बोले परसु धरहि अवमाने।।
बहु धनुही तोरी लरिकाई।
 कबहु न अब रिस कीन्हि गोसाईं।।
तेहि धनु पर ममता केहि  हेतू।
सुन रिसाय कह  भृगुकुल केतु।।

 दो ० -
रे नृप बालक  काल बस, 
बोलत तोहि न संभार ।
धनुही सम त्ररिपुरारि  धनु,
 विदित सकल संसार।

सरल भावार्थ-
परशुराम के पूछे जाने पर राम ने विनम्रतापूर्वक कहा- हे नाथ-धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई दास होगा ।उस दास के लिए क्या आदेश है। राम की यह विनम्रता पूर्ण वाणी सुनकर परशुराम बोले -सेवक वह होता है ,जो सेवा करता है। दुश्मन की करनी करने वाले से तो युद्ध की अपेक्षा है। जिसने भी यह धनुष तोड़ा है मेरे लिए वह सहस्त्रबाहु के समान शत्रु है। मैं उसकी भुजाएं काट डालूंगा । परशुराम कीअभिमान भरी बातों को सुनकर लक्ष्मण मुस्कुराए ,और बोले - हे मुनीश्वर आपको तो बड़ा ही अभिमान है अपने फरसे पर। मैं यह पूछता हूं, आखिर इस धनुष में रखा क्या है? जिसके लिए आप इतने आग बबूला हुए जा रहे हैं ।बचपन में तो हमने बहुत से धनुष तोड़ डाले तब तो आपने कभी विरोध नहीं किया 
कोई ऐसे ऋषि मुनि नहीं आए। आखिर इस धनुष में इतनी ममता क्यों? जो इतने आगबबूला हुए जा रहे हैं।
लक्ष्मण की बात सुनकर परशुराम का क्रोध चरम पर पहुंच गया।वे बोले- अरे राजा पुत्र,मूर्ख बालक जरा संभल कर बोल। तुझे बोलना भी नहीं आता । उचित अनुचित का भी बोध नहीं।तू साधारण धनुष की तुलना शिव के धनुष से कर रहा है। जिसकी महिमा सारा संसार जानता है। 

 विशेष अर्थ-




द्वितीय पद्यांश में जब परशुराम जी शिव धनुष तोड़ने वाले के विषय में राम से पूछते हैं ।तो इस प्रसंग में इस पद में लक्ष्मण जी परशुराम जी का मजाक उड़ाते हुए उनसे कहते हैं

भावार्थ
लक्ष्मण जी ने हंसकर परशुराम जी से कहा हे देव सुनिए हमारी समझ में तो सभी धनुष एक जैसे ही हैं। क्योंकि सभी धनुषों से एक ही काम होता है बाण चलाने का। तो अब आप यह बताइए कि इस धनुष के टूट जाने से आपको क्या हानि हुई, और यदि और न टूटता तो आपको क्या लाभ हो रहा था। इसके टूटने और न टूटने से कोई लाभ और हानि तो है नहीं। सड़ा हुआ पुराना धनुष था छूते ही टूट गया इसमें रघुपति का क्या दोष है ।आप तो बिना बात के ही क्रोध किए जा रहे हैं ।लक्ष्मण की यह व्यंग भरी बातें सुनकर परशुराम अपने फरसे की ओर देखते हुए बोले- रे सठ बालक, मूर्ख बालक ,वाचाल बालक ,तू मेरे स्वभाव से परिचित नहीं है। तू मुझे मात्र मुनि ही समझता है ।सन्यासी ही समझता है ।तू मुझे जड़  मुनि समझने का की गलती मत कर। मैं बाल ब्रहमचारी हूं अत्यंत क्रोधी हूं ।क्षत्रिय कुल का द्रोही हूं। यह पूरी दुनिया जानती है।

 बालक समझकर मैंने तुझे बार-बार छोड़ दिया। मैंने अपनी इन भुजाओं के बल पर ही पूरी पृथ्वी को कई बार जीता और सज्जन राजाओं को दान कर दिया ।सहस्रबाहु के भुजाओं को काटने वाला यह वही फरसा है ।जरा इस से डर अरे बालक मेरे फरसे का प्रभाव तो इतना है कि इसके प्रभाव से माताओं के गर्भस्थ शिशु भी गर्भ में ही मर जाते हैं ।तू जरा इससे डर।









तृतीय पद्यांश में लक्ष्मण का परशुराम से संवाद है
जिसमें लक्ष्मण परशुराम की अधिक गरवीले वचनों को सुनकर अभिमान भरेवचनों को सुनकर उनका अभिमान चूर करने के लिए उनका उपहास करते हुए कुछ कटु वचन कह रहे हैं


लक्ष्मण ने हंसकर मधुर वाणी में परशुराम से कहा अहो मुनेश्वर आप तो बड़े भारी योद्धा हैं बार-बार मुझे फरसा दिखाते हैंं।
ऐसा लगता है ,जैसे फूंक मारकर पहाड़ उड़ा देना चाहते हो ।आप यह समझ लीजिए ,यहां कोई कुमड़े का फल नहीं है ।कोई छोटा  काशीफल नहीं है जो आप की तर्जनी उंगली देखते ही मर जाएगा ।सूख कर गिर जाएगा ।अर्थात मैं आप से डरने वाला नहीं हूंं। मैंने तो आपके कंधे पर धनुष बाण देखकर ही अभिमान सहित कुछ बातें कहीं ।भृगुवंशी समझकर यज्ञोपवीत देखकर बार-बार में अपने क्रोध को रोक लेता हूं। स्वयं पर काबू करने का प्रयास करता हूं। क्योंकि हमारे परिवार की परंपरा है देवताा, ब्राह्मण, भक्त ,स्त्री, गाय, कमजोर लोगों पर हम हथियार नहीं उठाते क्योंकि इन्हें मारने से हमारे कुल की परंपरा को अपयश लगेगा। उसकी   अपकीर्ति   होगी नहीं तो आप को मारने में कितनी देर लगेगी पर हां आपसे मैं यह पूछना चाहता हूं कि आप यह फरसा धारण क्यों करते हैं ?आप यह फरसा का वजन बिना बात के ही लादे फिरते हैं ।आप की तो बातें ही इतनी कड़वी हैं जिन्हें सुनकर व्यक्ति हजार बार मर जाए ।फिर आप यह फरसा व्यर्थ ही धारण करते हैं।

बोध प्रश्न
**यहां कुम्हड़े बतिया को नाही का क्या तात्पर्य है? यहां कुमड़े के फल का उदाहरण लक्ष्मण ने क्यों दिया?

 **लक्ष्मण ने परशुराम की क्रोध पूर्ण बातों को चुपचाप सहन करने का क्या कारण बताया

 **लक्ष्मण ने परशुराम के किस प्रकार क्षमा मांगी और क्यों

 **लक्ष्मण के क्षमा मांगने पर परशुराम जी का क्रोध क्यों शांत नहीं हुआ ?

**लक्ष्मण के कुल की क्या परंपरा है?




चतुर्थ पद्यांश
कौशिक सुनहूं मंदु यह बालक.................. कायर कथहि प्रतापु।।








चतुर्थ पद्यांश में परशुराम जी का विश्वामित्र जी से संवाद है जब उन्हें लगा कि यह बालक उद्दंड है अमर्यादित है। किसी की सुनने वाला नहीं है। तो उन्हें लगा कि मुझे इसके गुरु से बात करनी चाहिए। इसको समझाने का कोई फायदा नहीं है।

परशुराम जी विश्वामित्र जी से बोले
हे विश्वामित्र सुनो यह बालक बड़ा ही कुबुद्धि है कुटिल है ।काल के बस हो गया है ।मेरे हाथों मरना चाहता है ।यह कुल का घातक है। सूर्य कुल में पैदा हुआ चंद्रमा के कलंक जैसा है । यह उद्दंड मूर्ख और निडर बालक अभी क्षण भर में मेरे हाथों मर जाएगा। मैं बार-बार तुम्हें समझा रहा हूं पुकार के कह रहा हूं फिर मुझे दोष मत देना ।यदि तुमइसे बचाना चाहते हो उसे चुप कराओ हमारा प्रताप बल क्रोध बताकर इसे मना करो कि हम से तर्क वितर्क ना करें। इतनी बात सुनते ही लक्ष्मण जी परशुराम जी से बोले -हे मुनि आपका सुयश आप के रहते दूसरा कौन वर्णन कर सकता है ।आपने अपने ही मुख से अपनी करनी अनेकों बार कहली। इतने पर भी आपको संतोष न हुआ हो तो और कह डालिए। क्रोध रोककर असह्य दुख मत सहिए। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले धैर्यवान और छोभ रहित हैं। गाली देते शोभा नहीं पाते। शूरवीर तो युद्ध में वीरता पूर्ण कार्य करते हैं। स्वयं अपनी वीरता का बखान नहीं करते वीरता का बखान करने वाले तो कायर होते हैं ।कायर लोग ही अपनी वीरता की डींग हांका करते हैं ।शूरवीर तो केवल करके दिखाते हैं कहते नहीं।

बोधप्रश्न

परशुराम ने लक्ष्मण की क्या विशेषताएं बताएं उनके आधार पर लक्ष्मण में क्या-क्या अवगुण हैं?

लक्ष्मण ने वीरों के क्या गुण बताएं हैं
?
परसुराम ने लक्ष्मण की शिकायत किससे की और क्यों?


जब परशुराम ने अपनी प्रशंसा की तो लक्ष्मण ने उन पर क्या व्यंग किया?


लक्ष्मण ने परशुराम को वीर ना होने का कायर होने का ताना कैसे दिया?

पंचम पद्यांश



तुम तो कालु हांकि तनु लांबा................अजहु न बूझ अबूझ।।

 


पंचम पद्यांश में लक्ष्मण जी ने परशुराम जी से कठोर वचन के कहे हैं और परशुराम जी ने विश्वामित्र से कुछ बातें कहीं हैं तथा विश्वामित्र ने मन ही मन कुछ बातें कही है।


लक्ष्मण जी परशुराम जी से बोले हे मुनि ऐसा लगता है यमराज आपके घर में ही रहते हैं इसलिए बार-बार मुझे आप धकेल धकेल कर यमराज के सामने कर देना चाहते हैं लक्ष्मण जी के या कठोर वचन सुनते ही हाथ में फंसे को धारण करके परशुराम जी बोले अब आप लोग मुझे दोष मत देना यह बालक सच में ही बंद करने योग्य है इसे मैंने बालक समझकर बहुत बार बचाया बहुत बार छोड़ दिया अब यह सचमुच में ही मेरे हाथों मरना चाहता है विश्वामित्र जी बीच में आ गये । उन्होंने कहा _हे मुनीश्वर इस बालक के अपराधों को क्षमा कर दीजिए ।साधु लोग बालक के गुण और दोष नहीं गिनते परशुराम बोले _हे विश्वामित्र यह गुरुजी बालक केवल तुम्हारे ही कारण बच रहा है तुम्हारे शील और वहां के कारण ही मैं से बर-बार क्षमा कर रहा हूं मारे बिना छोड़ रहा हूं।विश्वामित्र जी मन ही मन हंसे ,और मन ही मन बोले हे मुनीश्वर जिस तरह सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है वैसा ही हाल आपका है ।आपने इस बालक की शक्ति को पहचाना नहीं है। आपने लौह मरी खांड को ,अर्थात लोहे की खड्ग को गन्ने के रस से बनी हुई खांड समझ लिया है। आपने भूल कर दी है, इसे पहचानने में ।यह कोई साधारण बालक नहीं है।

बोध प्रश्न
कवि और कविता का नाम बताएं?

संपूर्ण प्रसंग किस छंद में है छंद का नाम बताएं?

खांड शब्द में दो अर्थ होने पर कौन सा अलंकार है?

दोहे में "गादधिसून" शब्द किसके लिए प्रयोग हुआ है?

विश्वामित्र ,परशुराम ,राजा, इन के दो दो पर्यायवाची पाठ में से छांट कर लिखिए।
विश्वामित्र ने किसकी उपमा लौहमय खांड से दी है?


छठवां पद्यांश

लखन कहेउ मुनि शील तुम्हारा.......... रघुकुल भानु।।



 


इस पद्यांश में लक्ष्मण ने परशुराम की विनम्रता और शील का मजाक उड़ाया है और परशुराम का क्रोध चरम सीमा पर पहुंच जाने के कारण राम के द्वारा लक्ष्मण को आंखों से डांटना और परशुराम से विनम्र वचन कहने का प्रसंग है।

व्याख्या भावार्थ-
 लक्ष्मण ने परशुराम से कहा

आपके शील स्वभाव को कौन नहीं जानता है। वह तो दुनिया भर में प्रसिद्ध है। आप माता-पिता से तो अच्छी तरह और उऋण हो ही गए हैं ।अब गुरु का ऋण का और सोच रह गया है आपके मन में ।उससे और और उऋण होना चाहते हैं। गुरु के ऋणतो ब्याज भी बढ़ गई होगी उसे आप मुझसे चुका लो ।मैं आपको तुरंत थैली खोल कर दे दूंगा। लक्ष्मण की यह कड़वी बात सुनते ही पूरी सभा हाय हाय पुकारने लगी। कहने लगी हाय यह बालक ने क्या कर डाला ।अब यह सच में ही कहीं मारा न जाए ।परशुराम का क्रोध बड़ा भयानक है ।लक्ष्मण ने पुनः कहना प्रारंभ किया मुनि श्रेष्ठ आप मुझे फंरसा दिखा रहे हैं। मैं जानता हूं आप राजा के शत्रु हैं। मैं ब्राह्मण समझकर आपको बार-बार छोड़ रहा हूं ।आपको कभी रणधीर ,बलवान ,वीर, नहीं मिले हैं। आज आपको रणबांकुरे से पाला पड़ा है ।ब्राह्मण देवता आपने छोटे-मोटे राजाओं को ही मार लिया होगा ।अर्थात जैसे घर में बड़े होते हैं और डपट देते हैं उसी तरह ।यह बात सुनते ही पूरी सभा थरथर कांपने लगी कहने लगी ।बालक नहीं
ने यह अनुचित कह दिया ।लक्ष्मण के इन कठोर वचनों को सुनते ही राम ने आंखों से ही लक्ष्मण को शांत होने का इशारा दिया ।डाटा और लक्ष्मण के क्रोध पूर्ण जो वचन थे जो परशुराम के  क्रोध में घी डालने का काम कर रहे थे, उसे भड़काने का काम कर रहे थे, उसे शांत करने के लिए श्रीराम ने जल के समान शीतल वचन बोले। उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास किया।


बोध
प्रश्न


**लक्ष्मण ने परशुराम के शील स्वभाव की क्या कहकर मजाक उड़ाई?

**परशुराम के गुरु का ऋण छुपाने के लिए लक्ष्मण जी ने क्या उपाय बताया?

**सभा में उपस्थित लोग हाय हाय क्यों चिल्ला रहे थे?

**अंतिम दोहे में परशुराम के क्रोध की तुलना किससे की गई है लक्ष्मण की वचनों की तुलना किससे की गई है और राम के वचनों की तुलना किससे की गई है?

**अंतिम दोहे में कौन सा अलंकार है?


                         ्््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््््  पाठ्य पुस्तक से अभ्यास प्रश्न
प्रश्न नंबर 1 परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष टूट जाने की कौन कौन से कारण बताएं ?

अथवा

अपने भाई के बचाव में परशुराम लक्ष्मण ने धनुष टूटने के संबंध में क्या तर्क दिए?

उत्तर
 अपने भाई का पक्ष लेते हुए धनुष टूटने के संदर्भ में लक्ष्मण ने परशुराम को निम्नलिखित तर्क दिए?
1
हे मुनिवर यह सड़ा हुआ पुराना धनुष था जो छूते ही टूट गया इसमें भैया का क्या दोष है।
2.
हे मुनीश्वर बचपन में हमने बहुत सारे धनुष तोड़े थे परंतु तब तो कोई ऐसा क्रोध करने वाला नहीं आया था इस धनुष में आखिर ऐसा क्या रखा है जो आप इतनी आग बबूला हो रहे हैं।
3
हमारे लिए तो सभी धनुष एक समान हैं इसके टूटने से और न टूटने से आपका क्या लाभ और क्या हानि हो रही है?

प्रश्न दो
परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएं हुई उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएं अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर
राम और लक्ष्मण के स्वभाव में बहुत बड़ा अंतर है उनकी विशेषताएं इस प्रकार समझी जा सकती हैं
1राम का स्वभाव विनम्र है वह धैर्यवान हैं जबकि लक्ष्मण बहुत चंचल क्रोध वान हैं वाचाल हैं।
2.राम मृदुभाषी हैं वह दूसरों से कड़वा नहीं बोलते जब के लक्ष्मण चुन-चुन के ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जिससे परशुराम का क्रोध और भड़क जाए वह कटु्वादी है।


3.राम बड़ों की बातों को चुपचाप सहन कर लेते हैं जबकि लक्ष्मण तुरंत लौटकर जवाब देते हैं। तर्क वितर्क करते हैं उनकी तर्क शक्ति विलक्षण है।

राम अत्यधिक गंभीर स्वभाव के हैं जबकि लक्ष्मण मजाकिया और मजाक उड़ाने वाले हैं ।दूसरों का व्यंग करने में वह चूकते नहीं।

प्रश्न 3
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद में जो प्रसंग सबसे अधिक प्रभावी हो जो आपको अच्छा लगता हो उसे संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर
यह प्रश्न क्रियाकलाप कहां है इसे डायलॉग लेखन कहते हैं संवाद लेखन कहते हैं छात्र स्वयं करने का प्रयास करें बाद में अपडेट किया जाएगा।

प्रश्न 4
परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या कहा उसके आधार पर परशुराम के स्वभाव की विशेषताएं बताइए।

उत्तर
परशुराम ने अपने स्वभाव की विशेषताएं बताते हुए कहा-
 मैं बाल ब्रह्मचारी हूं। अत्यंत क्रोधी हूं ।क्षत्रियों के वंश का नाश करने वाला हूं ।दुनिया मुझे जानती है मैंने अपनी भुजाओं के बल से सारी पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया था। कई बार उसे जीत जीत कर ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। यह मेरा वही फंरसा है जिसने सहस्रबाहु की भुजाएं काट डाली थी ।मेरे इस फरसे के भयानक प्रभाव से माताओं के गर्भस्थ शिशु भी मर जाते हैं।

प्रश्न 5
लक्ष्मण ने वीर योद्धाओं की क्या-क्या विशेषताएं बताईं है?

उत्तर
1.लक्ष्मण ने वीर योद्धाओं की निम्नलिखित विशेषताएं बताइ

2.वीर योद्धा धैर्यवान होते हैं।
 3.वह छोभ रहित  होते हैं।  क्रोध नहीं करते।
 4.वीर पुरुष किसी को अपशब्द नहीं ।
5.कहते वीर शूरवीर युद्ध के मैदान में वीरता पूर्ण कार्य करके दिखाते हैं ।
अपनी प्रशंसा स्वयं नहीं करते ।
6.वीर अपने मुंह से अपनी बड़ाई नहीं करते गाल नहीं बजाते

 7.वह युद्ध में उपस्थित होकर सामने दुश्मन को पाकर अपने प्रताप की डींग नहीं मारते।

प्रश्न 6
 साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर
साहस और विनम्रता के साथ सद्गुण होना परम आवश्यक है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाता है। साहसी व्यक्ति सद्गुणों के साथ अपनी शक्ति का सदुपयोग कर सफलता प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है ।परंतु यदि व्यक्ति में साहस और शक्ति के साथ विनम्रता न हो तो वह समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त नहीं कर सकता ।वह सभी का प्रिय नहीं बन सकता ।इसलिए साहस के साथ शक्ति और शक्ति के साथ साहस और विनम्रता होना अत्यंत आवश्यक है साहसी व्यक्ति यदि विनम्रता विहीन होगा ,तो घृणा का पात्र बन जाएगा ।समाज उसे सम्मान की नजर से नहीं देखेगा।

प्रश्न 7
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें
के)**बिहसी लखन बोले मृदुवाणी ..........फूंक पहारू।

भावार्थ
प्रस्तुत पंक्ति का भाव है परशुराम ने लक्ष्मण जी को जब फरसा दिखाया तो लक्ष्मण जी ने उन पर व्यंग करते हुए कहा आप मुझे फरसे से डराने का काम कर रहे हैं ।इससे डराने के काम करने का तात्पर्य है आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं । अर्थात में आपके फरसे से बिल्कुल नहीं डरता।

(ख) इहां कुमहड बतियां ....................... सहितअभिमाना।

भावार्थ
प्रस्तुत पंक्ति का भाव है लक्ष्मण जी ने परशुराम जी से कहा यहां कोई काशीफल नहीं है जिस कच्चे काशीफल को तर्जनी उंगली दिखा देने से ही सूख कर गिर जाता है। मर जाता है ।अर्थात यहां छुईमुई जैसा कोई नहीं है ।यहां आपके सामने रघुकुल का वीर बालक खड़ा है ।वह आपकी बातों से डरने वाला नहीं है भयभीत होने वाला नहीं है लक्ष्मण को अपने कॉल और अपनी वीरता पर अभिमान है।

(ग) गांधी सून कह हृदय हंसी...................... अजहु न बूझ अबूझ।

भावार्थ
मन मुनि परशुराम ने जब विश्वामित्र से कहा कि मैं लक्ष्मण को कुठार  से काट डालूंगा ।केवल तुम्हारी विनम्रता और शील के कारण छोड़ रहा हूं तो विश्वामित्र जी ने यहां मन ही मन हंसते हुए उनसे कहा है कि आपने इस बालक की शक्ति को पहचाना नहीं। यह कोई साधारण बालक नहीं है ।जिस तरह  सावन का अंधा हरा ही हरा देखता है उ,सी प्रकार आप इसे साधारण बालक समझ रहे हैं ।यह लोह मई खाड मैं अर्थात यह चलाने वाली तलवार है। खाने वाली मिठाई नहीं है।

प्रश्न 8
पाठ के आधार पर तुलसीदास के भाषा सौंदर्य पर 10 पंक्तियां लिखिए

उत्तर
तुलसीदास के रामचरितमानस से उद्धृत इस प्रसंग के भाषा सौंदर्य

की विशेषताएं इस प्रकार हैं-
तुलसीदास जी ने साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग किया है।
 तुलसीदास जी की भाषा में प्रसंग के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हुई है
तुलसीदास जी ने अपने काव्य में सरल और सटीक शब्दों का प्रयोग किया है।
 तुलसीदास जी की भाषा में सरलता सहजता सरलता और प्रवाह मयता है ।
दोहा और चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है ।अनुप्रास उपमा रूपक अलंकार ओं का अत्यंत आकर्षक प्रयोग है ।
व्यंग्यात्मक भावों को व्यक्त करने के लिए तुलसीदास जी ने जिस भाषा का प्रयोग किया है, तर्क शक्ति का प्रयोग किया है वह पूरी तरह सफल है ।
तुलसीदास जी की भाषा में वीर रस की अनुभूति कराने में पूर्णता सफल है ।भाषा में संगीत का भी गुण है ।तुलसीदास जी की भाषा में सभी पात्रों व्यक्तित्व को उजागर करने में पूर्णता सफल हैं ।
लोकोक्ति और मुहावरे का भी सुंदर प्रयोग किया है जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाना।

प्रश्न नौ
पाठ के आधार पर सिद्ध करिए पूरे प्रसंग में व्यंग का अनूठा सौंदर्य है

उत्तर
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद के पूरे प्रसंग में व्यंग्य अपने आकर्षक रूप में प्रकट हुआ है या इस प्रकार सिद्ध हो सकता है
प्रसंग के प्रारंभ में ही जब राम कहते हैं कि धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई सेवक होगा तब परशुराम  संवादात्मक स्वर में में कहते हैं शत्रुता का कार्य करने वाला सेवक ही नहीं होता।
लक्ष्मण और परशुराम के बीच के संवाद तो एक दूसरे पर व्यंग्यात्मक प्रहार करते हुए दिखाएं हैं लक्ष्मण ने जब सारे देशो को तोड़ने को एक जैसा कहते हुए बताया तो परशुराम ने कहा कि तुम साधारण बसों की तुलना शिव के धनुष कर रहे हो संवाद अगले संवाद के लिए स्थान छोड़ रहा है अर्थात हर एक बात विवाद को आगे बढ़ाने के लिए स्थान छोड़ रही है इस प्रकार संवाद आत्मक रोचकता बढ़ गई है।

प्रश्न 10
पाठ में कौन-कौन से अलंकारों का प्रयोग हुआ है अथवा निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-कौन से अलंकार हैं
(क)
*बालक बोल बधो नहीं तो ही
(ख, .)

को टि कुलिस  सम बचाना तुम्हारा।

(ग) तुम तो कालु हां कि तनु लावा।
बार-बार मोहि लागि बुलाया।।
(घ)
लखन उत्तर आहुति सरस  भृगुबर कोप कृसानु
 बढ़त देखी जलसम बचन बोले रघुकुल भानु।।

उत्तर
क_ब की आवृत्ति के आधार परअनुप्रास अलंकार
ख _सम के आधार पर_उपमा अलंकार । का के आधार परअनुप्रास अलंकार।
ग_जनु शब्द के आधार पर उत्प्रेक्षा अलंकार तथा बार-बार शब्द प्रयोग के आधार पर पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।
घ_संपूर्ण दोहे में तुलना की गई है लक्ष्मण की भी से परशुराम की आग से और राम के वचनों की जल से इस प्रकार यहां पूरी तरह से उपमा अलंकार है





 अतिरिक्त प्रश्न



















Comments

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    1. Thank you aap ke liye upyogi hai isase mere liye badi Khushi ki kya baat hai

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  3. JAI HIND MAM,
    BEST EXPLANATION
    MAYANK KUMAR 1ST
    CLASS-10E

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    1. जय हिंद बेटा थैंक यू

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  4. Thanks mam for explanation
    Mam मुझे इस चैप्टर में बहुत दिक्कत आ रही थी कि पर mam आपके explanation से पूरा चैप्टर समझ आ गया है
    Very nice explanation👌👌😊😊🙏🙏

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    1. बहुत खुशी हुई मुझे मेरी कोशिश काम आई

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  5. Thanks mam for this wonderful explanation

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  6. आपका जबाव नहीं

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  7. {Thanks mam} for send this explaination this is excellent explaination

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