कबीर की साखियां और सबद सस्वर पाठ ,भावार्थ , प्रश्न उत्तर अभ्यास






1.मानसरोवर सुभर जल हंसा के लि कराहि
                   मुक्ता फल मुक्ता चुगे अब उड़ी अंत न जााहि।


भावार्थ
मन रूपी सरोवर में आत्मा रूपी हंस विचरण कर रहा है जिसे मुक्ति रूपी मोती चाहिए मुक्त रूपी मोती प्राप्त होने के बाद वह कहीं अन्यत्र नहीं जाना चाहता उसे मुक्ति रूपी मोती प्राप्त हो चुका है।

2.पखा पाखी के कारने ,सब जग रहा भूलान।
निरपख होय के हरी  भजै, सोई संत सुजान।

भावार्थ
पूरा संसार पक्ष और विपक्ष के चक्कर में पड़ा है ,ईश्वर और अल्लाह के चक्कर में पड़ा है। परंतु वास्तव में सच्चा संत वही है जो निष्पक्ष होकर ईश्वर का भजन करता है ।मानवता में ईश्वर को तलाशता है।

3.हस्ती चढिए ज्ञान को, सहज दुलीचा डार।
 स्वान रूप संसार है  भूखन दे झक   मार।
भावार्थ
कबीरदास जी यहां ज्ञानी को ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होने की सलाह देते हैं ,और कहते हैं कि यह संसार कुत्ता रूपी है ।जो ज्ञानियों पर भोंकता रहता है  ।हाथी अपनी चाल चलता है कुत्ता अपना भोंकता है, इसलिए ज्ञानियों को संसार के भौंकने की चिंता नहीं करनी चाहिए अपने ज्ञान के मार्ग की ओर उन्मुख रहना चाहिए।

4.प्रेमी ढूंढत में फिरो प्रेमी मिलो न कोय।
 प्रेमी को प्रेमी मिले सब विष अमृत होय।

भावार्थ
भक्त रूपी प्रेमी ईश्वर रूपी प्रेमी को ढूंढ रहा था। जब तक उसे ईश्वर नहीं मिला तब तक उसे संसार में बड़े कष्ट थे। जैसे ही उसका साक्षात्कार ईश्वर रूपी प्रेमी से हुआ ,उसके सारे कष्ट सुखों में बदल गए ।सारे विष अमृत में परिवर्तित हो गए।


5.हिंदू मूआ राम कह, मुसलमान खुदाय ।
कहे कबीर सोई जीवता  जो दुहु के निकट न जाय।



भावार्थ
कबीर के अनुसार हिंदू राम को बड़ा मानता है और मुसलमान खुदा को बड़ा मानता है दोनों राम रहीम के चक्कर में पड़कर वास्तविक ईश्वर को  भुला रहे हैं। कबीर का मानना है सच्चा संत वही होता है जो राम रहीम के चक्कर में न पड़कर ,अल्लाह ईश्वर के चक्कर में न पड़कर बीच का रास्ता अपनाता है, और निराकार ब्रह्म की उपासना करता है।

6.काबा फिर काशी भया राम भैया रहीम।
मोट चून मैदा भैया बैठ कबीरा जीम।

कबीरदास के अनुसार काबा और काशी में कोई अंतर नहीं है दोनों ही ईश्वर के स्थान हैं ईश्वर हर जगह निवास करता है। उद्देश्य एक ही होता है कबीर दास जी उदाहरण देकर स्पष्ट करते हैं कि जिस प्रकार मैदा और आटा दोनों से ही पेट भरा जाता है और एक ही गेहूं से दोनों का निर्माण होता है। वैसे ही एक ही ईश्वर के यह दो नाम है एक ही ईश्वर के यह अलग-अलग स्थान हैं। इनमें कोई अंतर नहीं है ।वह इस तरह के अंतर को नहीं मानते।

7.ऊंचे कुल का जनमिया , जे करनी ऊंच न होय ।
सुबरन कलश सुरा भरा, साधू निंदा सोय।

भावार्थ
दोहे का भाव है उच्च कुल में जन्म लेने वाला या संपन्न परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति ऊंचा नहीं होता, बल्कि उसको उसके कर्म ऊंचा या नीचा बनाते हैं ।जिस तरह सोने के कलश में भरी हुई शराब कभी पूजनीय नहीं हो सकती , जबकि मिट्टी के कलश में भरा हुआ गंगाजल हर परिस्थिति में पूजनीय होता है ।पदार्थ पूजनीय होता है ,विचार पूजनीय होते हैं ,कबीर  जी यहां यही स्पष्ट करना  चाहते हैं ।ऊंचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता।



                       


सबद.1

मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना में मस्जिद ना काबे कैलाश में।
ना तो कौने  क्रिया कर्म में नाही जोग बिराग में।
खोजी होए तो तुरंत ही मिलिहो पल भर की तलाश में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो सब सांसो की स्वास में।

 

कक्षा में क्रिया कलाप



भावार्थ
कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर का कहना है , कि हे मानव तू मुझे बाहर मत ढूंढ। मुझे कहीं अन्यत्र ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। मैं तो तेरे हृदय में ही विराजमान हूं ।ना मैं मंदिर में हूं ना मैं मस्जिद में हूं ना मैं काशी में हूं। ना मैं कैलाश में हूं ।ना किसी ढोंग    ढकोलसे में   हूं  ,न छापों में हूं न तिलक में हूं ,मुझे ढूंढना है तो सच्चे मन से मानव मात्र में ढूंढो ।जीव मात्र में ढूंढो मैं पलभर की तलाश में मिल जाऊंगा । मैं तो सब सांसो की सांसो में बसा हुआ हूं।


 साखी 2


संतौ भाई आई ग्यान की आँधी. रे!
 भ्रम की टाटी सबै उड़ानी, माया रहै न बाँधी रे।।
 हितचित की दोउ थुनी गिरानी, मोह बलींडा टूटा।
 त्रिस्न छाँनि परी घर ऊपर, कुबुधि का भांडा फूटा।। 
ज़ोग जुगति करि संतौ बाँधी, निरचू चुवै न पाणीं। 
कूड़-कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
 आँधी पीछे जल बूठा, प्रेम हरी जन भीना। 
कहै कबीर भांन के प्रगटे, उदित भयो तम खीना।


कठिन शब्दार्थ – टाटी = टटिया, टाटा का परदा।उड़ाणी = उड़ गईं। हित चित = चित्त की दो अवस्थाएँ, (विषयों में आसक्ति और बाहरी आचरण), द्विविधि या अनिश्चय की अवस्था। थूनि = खम्भा। गिरानी = गिर गई। बलींडा = बल्ली (छाजन को साधने वाला बीच का बेड़ा)।त्रिस्ना = तृष्णा, चाह। छाँनि = छप्पर।कुबुधि = कुबुद्धि, कुविचार।भाँडा = बर्तन।जोग जुगति = योग की युक्ति, सोच-विचार, योग साधना।निरचू = निश्चिंत, बेफिक्र।चुवै = चूना, टपकना। पाणीं = पानी।कूड़ = कूड़ा, छल-कपटे।काया = शरीर और मन। निकस्या = निकल गया। हरि की गति = ईश्वर का स्वरूप या कृपा।बूढ़ा = उमड़ा या बरसा। जने = भक्त। भीना = भीग गया, मग्न हो गया। भांन = सूर्य, ज्ञान।तम = अंधकार, अज्ञान।षीनाँ = क्षीण, नष्ट।

 संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कबीर के पदों से लिया गया है। इस पद में कबीर मनुष्य के हृदय में ज्ञान का उदय होने पर, उसके समस्त दुर्गुणों के नष्ट हो जाने का उल्लेख कर रहे हैं। 


व्याख्या – कबीर कहते हैं। हे संतो ! हमारे अंतर्मन में ज्ञान की आँधी आई हुई है। इस आँधी ने हमारे मन की भ्रमरूपी टटिया को उड़ा दिया है। माया बंधन भी उसे रोक नहीं पा रहे हैं। भाव यह है कि ज्ञानोदय होने पर हमारे मन का भ्रम और माया का प्रभाव समाप्त हो गया है। हमारे मनरूपी घर पर तृष्णारूपी छप्पर पड़ा था और द्विविधा या अनिश्चयरूपी दो खम्भे इसे साधे हुए थे। ज्ञान की प्रबल आँधी ने इनको गिरा दिया है। इससे इन खम्भों पर टिकी हुई मोहरूपी बल्ली भी टूट गई है। भाव यह है कि ज्ञानोदय होने से हमारे मन की द्विविधा और मोह भी नष्ट हो गया। यह बल्ली के टूटते ही तृष्णारूपी छप्पर (छान) भी गिर पड़ी और वहाँ स्थित कुबुद्धि रूपी सारे बर्तन, भाँड़े फूट गए अर्थात् सारे कुविचार नष्ट हो गए। हे संतो ! अबकी बार हमने घर पर संतोषरूपी नया छप्पर बड़े यत्न से ढका और बाँधा है। अब हम पूर्णत: निश्चिन्त हैं, क्योंकि अब इसमें से एक बूंद भी वर्षा का पानी नहीं टपक सकता अर्थात् सांसारिक विषय विकार अब हमारे हृदय को लेश मात्र भी प्रभावित नहीं कर सकते। मन में ज्ञान के आगमन से मुझे हरि’ के स्वरूप का ज्ञान हो गया है और मन . का सारा कूड़ा-करकट (दुर्गुण) साफ हो गया है। ज्ञानोदय के पश्चात् मेरा भक्त हृदय प्रभु प्रेम की वर्षा में भीग ग.. है। ज्ञानरूपी सूर्य के उदय से अज्ञानरूपी अंधकार पूर्णतः नष्ट हो चुका है।



प्रश्न उत्तर  अभ्यास
प्रश्न नंबर 1
कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?

उत्तर
कबीर ने सच्चे प्रेमी की कसौटी बताई है सच्चे मन से ढूंढना। जब प्रेमी रूपी भक्त ईश्वर को सच्चे मन से ढूंढता है और जब उसे ईश्वर प्राप्त हो जाता है तो उसके सारे दुख सुख में बदल जाते हैं । विष अमृत में बदल जाते हैं। सच्चे प्रेमी को ईश्वर से मिलने की आतुरता होती है ।व्याकुलता होती है ।जब तक वह उसे नहीं मिलता तब तक वह बेचैन रहता है।

प्रश्न नंबर 2.
 मान सरोवर से कवि का क्या आशय है?

 उत्तर
मानसरोवर से कवि का अभिप्राय है मन रूपी सरोवर ।जिसमें आत्मा रूपी हंस विचरण कर रहा है ।जो मुक्ति रूपी मोती प्राप्त करना चाहता है ।जब उसे मुक्त रूपी मोती प्राप्त हो जाता है तो वह अन्यत्र कहीं नहीं जाना चाहता।

प्रश्न 3
 तीसरे दोहे अर्थात हस्ती चड़िए ज्ञान को में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान की बात कही है किस तरह के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर
तीसरे दोहे में कबीर दास जी ने ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होने की बात कही।अर्थात कबीर संदेश देना चाहते हैं कि जब हम ज्ञान अर्जन कर लें तो हमारे अंदर अभिमान नहीं आना चाहिए ।ज्ञान को विनम्रता के साथ ग्रहण करना चाहिए। यह संसार ज्ञानियों के विषय में कुछ भी कहता है अनर्गल बातें भी करता है । संसार की बातों की चिंता किए बिना ज्ञान के मार्ग पर निरंतर चलते रहना चाहिए और विनम्रता के साथ सहजता के साथ ज्ञानार्जन करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4
इस संसार में सच्चा संत कौन है?

उत्तर इस संसार में सच्चा संत वही है जो राम रहीम के चक्कर में नहीं पड़ता है ईश्वर को एक मानता है निराकार ब्रह्म की उपासना करता है मानवता में ईश्वर को खोजने का प्रयास करता है।

प्रश्न 5
अंतिम दोहा में कबीर जी ने किस तरह तरह की संकीर्णता ओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर अंतिम दोहे में कबीर ने स्पष्ट किया है कि ऊंचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता व्यक्ति के ऊंचे या नीचे होने का निर्धारण उसके कर्मों पर है यदि वह करनी है तो समाज में उसे ऊंचा माना जाएगा और यह देश के कार्य अच्छी नहीं है तो समाज में उसे हेय दृष्टि से देखा जाएगा उसका मान और सम्मान उसका ऊंचा और नीचा होना उसके कर्मों पर निर्भर करता है अतः ऐसा मानना के ऊंचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊंचा हो जाएगा यह व्यर्थ की संकीर्णता है।

प्रश्न 6

 किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है,कुल से नहीं। तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर
 किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है उसके कुल से नहीं यह प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है ,जिस प्रकार सोने के कलश में शराब भर दी जाए तो वह किसी भी स्थिति में सज्जनो  की पूजनीय नहीं होगी लेकिन यदि मिट्टी के कलश में भी गंगा जल भरा हो तो वह हर स्थिति में पूजनीय है ।इस प्रकार व्यक्ति के अंदर भरे हुए विचार ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं ।कुल से कोई ऊंचा या नीचा नहीं बनता है ।पात्र में भरे हुए पदार्थ का मुख्य स्थान है पात्र का नहीं ।

प्रश्न 7
 हस्ती चलिए ज्ञान को दोहे का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर
 काव्य सौंदर्य
दोहा छंद है ,गेय है।
चित्रात्मक शैली हैै, हाथी पर सहजता रूपी दुलीचंद डालकर ज्ञानी के सवार होने की बात कही गई है कुत्तों का भौंकना हाथी का चलना एक चित्र प्रस्तुत करता है।
सांग रूपक अलंकार है
झक मारना मुहावरा है सब कड़ी भाषा है उपमा अलंकार का भी प्रयोग है।

सबद
प्रश्न उत्तर अभ्यास
1.मनुष्य ईश्वर को कहां-कहां ढूंढता फिरता है?

उत्तर
 मनुष्य ईश्वर को मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे गिरजाघर ढोंग , बाह्यआडंबर ,जप, माला, छापा, तिलक ,आदि में ढूंढता फिरता है जबकि इश्वर तो उसके अंतः करण में ही विराजमान है। ईश्वर से मिलने के लिए तो सच्ची तड़प और सच्ची भावना चाहिए।

प्रश्न 2.
कबीर में किन किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर
कबीर ने जप माला छापा तिलक बाह्य आडंबरों का खंडन किया है और सच्चे मन से ईश्वर की साधना करने की सलाह दी है।
प्रश्न 3
कबीर ने ईश्वर को सब सांसों की सांस में क्यों बताया है?

उत्तर
कबीर ने ईश्वर को सब सांसो की सांसो में इसलिए कहा है क्योंकि यह पूरा संसार ईश्वर का ही प्रतिरूप है ।हर एक जीव मात्र में ईश्वर का अंश है ।ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है ।अतः ईश्वर तो कण-कण में विराजमान है ।इस वजह से कबीर ने ईश्वर को सब सांसो की सांसो में कहा  है।








कठिन शब्द
पखा पाखी _पक्ष विपक्ष
अ न त-अनंत
बैराग -वैराग्य
निर्पख -निष्पक्ष
दुलिचा-हाथी पर बिछाया जाने वाला कपड़ा
स्वान _कुत्ता।
सरोवर -.तालाब
केली _कलरव
 मुक्ता -, मोती; मोक्ष




विशेष – स्वभाव के दुर्गुणों से मुक्ति पाने का कबीर एक ही उपाय मानते हैं, वह है हृदय में ज्ञान-सूर्य का उदय होना। ज्ञान के आने पर किस प्रकार सारे विकार एक-एक करके विदा हो जाते हैं। यही इस पद में कबीर ने वर्णित किया है। कबीर स्वयं को राम की दुलहिन और परमात्मा की विरहिणी के रूप में प्रस्तुत करते हैं साथ ही वह प्रेम और भक्ति के साथ ज्ञान का प्रकाश भी आवश्यक मानते हैं। ज्ञानी अर्थात् निर्मल हृदय भक्त ही परमात्मा की कृपा का पात्र हो सकता है। एद में यही संकेत है। पद में सांगरूपक, रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है। प्रतीकात्मक शैली का भी प्रयोग हुआ है। भाषा में तद्भव शब्दों का प्रयोग है और साहित्यिक झलक विद्यमान है।।







Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

कैदी और कोकिला

नेताजी का चश्मा 10th Hindi

class 7th 8th and 9thसमास अर्थ परिभाषा प्रकार और उदाहरण ,पहचान