लखनवी अंदाज़ यशपाल 10th क्षितिज

पाठ सारांश

लखनवी अंदाज इस पाठ के लेखक यशपाल जी हैं। इस पाठ में यशपाल जी ने खोखली शान   दिखाने वाले लोगों पर व्यंग किया है ।लेखक को यात्रा करनी थी। उसने यह सोच कर कि सेकंड क्लास के डिब्बे में मुझे एकांत मिलेगा और मुझे नई कहानी लिखने का मौका मिल जाएगा मैं कुछ सोच सकूंगा कुछ विचार कर सकूंगा यही विचार करके उसने सेकंड क्लास का टिकट खरीदा। लेकिन जैसे ही वह ट्रेन के डिब्बे में दाखिल हुआ तो उसकी आशा के विपरीत वहां एकांत न था वहां पहले से ही एक सफेदपोश नवाब साहब बर्थ पर पालथी मारे बैठे हुए थे ।लेखक के डिब्बे में कदम रखते ही नवाब  साहब ने अपनी आंखें फेर ली और खिड़की से बाहर की ओर देखने लगे। उनके चेहरे और हाव-भाव से लग रहा था कि उनकी एकांत दुनिया में खलल पड़ गई है ,और लेखक का डिब्बे में आना उसे अच्छा नहीं लगा लेखक का भी अपना स्वाभिमान था। उसने भी सोचा यह व्यक्ति मुझसे बात नहीं करना चाहता तो मैं भी क्यों पहले से बात करूं परंतु आखिर चुप्पी कब तक रहती चुप्पी टूटी।
नवाब साहब ने लेखक से पूछा विला खीरे का शौक  फरमाइए । अर्थात खीरा खाने का आग्रह किया। लेकिन लेखक ने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मना कर दिया ।वह सोचने लगे अभी तो यह मुझ से आंखें चुरा रहे थे ,मुंह फेर रहे थे, अब खीरा खाने की पूछ रहे हैं। लेखक ने कहा नहीं आप खाइए मेरा पेट जरा खराब है।

नवाब साहब ने सामने रखे हुए खीरो को बड़े करीने से धोया पोंछा और तौलिया पर सजा कर रखा । फिर उन्होंने एक हीरे को छिला कांटा और उसमें नमक लगाया। लखनऊ के बालम खीरा बेचने वाले विक्रेताओं की एक खासियत है ,वे खीरे के साथ सुगंधित विशेष प्रकार का मसाला देते हैं। लखनऊ का  बालम खीरा बड़ा मशहूर है ।जब नवाब साहब खीरे पर नमक लगा रहे थे तो उ नकी पनियती  फांकों को  देखकर लेखक के मुंह में भी रस प्रावित हो रहा था ।लेखक सोच रहा था कि अब नवाब साहब इन खीरे की अपनी खुशबू दर फांकों को बड़े चाव से खाएंगे और अंतर आत्मा तृप्त कर लेंगे और परंतु ऐसा ना हुआ नवाब साहब ने उनकी विचार के विपरीत उन फांकों एक-एक करके उठाया  सूंघा और एक-एक करके खिड़की से बाहर की ओर फेंक दिया ।तत्पश्चात उन्होंने एक लंबी सी डकार ली और लंबे पैर करके पेट पर हाथ फिरा के बर्थ पर लेट गए। वे लेखक को दिखाना और जताना चाहते थे कि नवाब लोग खीरे जैसी नाचीज को खाते नहीं सूंघ कर फेंक देते हैं। लेखक सोच रहा था कि बिना खीरा खाए जब पेट भर सकता है डकार आ सकती है तो बिना पात्र और घटना के कहानी क्यों नहीं की जा सकती और यहां तो उसे पात्र भी मिल गया है और घटना भी मिल गई है।

 

 



पाठ्यपुस्तक की अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक को नवाब के किन हाव भावों से महसूस हुआ कि वह उससे बात करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है?

उत्तर
जब लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में दाखिल हुआ तो बर्थ पर पालथी मारे बैठे हुए नवाब साहब को देखा। लेखक के डिब्बे में प्रवेश करते ही नवाब साहब थोड़े असहज से हो गए ।लेखक ने नवाब साहब की आंखों में असंतोष के भाव पढ लिए ।वे समझ गए थे के लेखक का डिब्बे में आना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा, क्योंकि नवाब साहब ने उन्हें देखते ही अपनी आंखें फेर ली ,और खिड़की से बाहर की ओर देखने लगे उनके भावों से महसूस हो रहा था कि लेखक से बात करने के लिए नवाब साहब तनिक भी उत्सुक नहीं थे।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही अपने से कीड़ा काटा नमक बुर्का अंततः सुनकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव की ओर इंगित करता है?

उत्तर
नवाब साहब ने खीरा बड़े यत्न से काटा शीला नमक मिर्च लगाया और उसे सुनकर खिड़की से बाहर फेंक दिया उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा कि वह अपनी खानदानी तहजीब नशा नफासत दिखा सकें वह अपनी रईसी का रौब जमाना चाहते थे उनका स्वभाव दिखावा परस्त है उनका जीवन बनावटी शैली का है इसलिए ऐसा उन्होंने किया।

प्रश्न3.
बिना विचार और घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है यशपाल के इस विचार से आप कहां तक सहमत हैं?

उत्तर बिना विचार घटना और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है यह बात तो सत्य है परंतु कहानी में फिर उतना प्रभाव नहीं रहता है जितना प्रभाव घटना और पात्रों के आधार पर होता है उस कहानी का पाठक वैसा ही महसूस करता है जैसे कीड़े को सुनकर बाहर छोड़ देना और पेट भरने की कल्पना करना इस प्रकार उस कहानी में कल्पना का तत्व की प्रधानता ज्यादा होगी यथार्थ कम होगा इसलिए कहानी के लिए घटना पात्र विचार का होना अत्यंत आवश्यक है।

प्रश्न 4 आप इस निबंध को क्या नाम देना चाहेंगे?


इस निबंध को अन्य नाम दिए जा सकते हैं-
 नवाबी रईसी दिखावा।
 खोखले लोग।
 लखनऊ के नवाब की नवाबी।

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