बाल गोविंद भगत रामवृक्ष बेनीपुरी10th क्षितिज
पाठ के सारांश को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
1.बालगोबिन भगत का व्यक्तित्व
बाल गोविंद भगत मझोले कद के गोरे चिट्टे आदमी थे ।60से ऊपर की उनकी उम्र थी सिर के बाल पक चुके थे। कमर में एक लंगोटी और सिर पर कबीरपंथी कनपटी टोपी पहनते थे ।
जाड़े में काली कमली ओढ़ते थे ।मस्तक पर रामानंदी तिलक लगाते थे ।गले में तुलसी की माला पहनते थे। बालगोबिन भगत साधु भी थे और गृहस्थी थे ।उनका एक बेटा था और एक बहु थी। उनके साथ रहते थे खेती-बाड़ी में काम करते थे।
2.सच्चे साधु
बालगोबिन भगत वास्तव में सच्चे साधु थे। परिवार वाले होते हुए भी वह साधुओं जैसा जीवन जीते थे। कबीर को अपना साहब मानते थे। उन्हीं के गीतों को गाते थे। उन्हीं के जीवन आदर्शो पर चलते थे। खरा व्यवहार करते थे। बिना किसी से पूछे किसी की चीज न लेते थे यहां तक कि दूसरे के खेतों में शौच तक न जाते थे। जो कुछ खेत में पैदा होता था उसे अपने घर से 4 कोस दूर ले जाकर कबीरपंथी मठ में अपने साहब के दरबार में अर्पण करने जाते थे
जो कुछ प्रसाद के रूप में बचता था उससे अपना गुजारा चलाते थे।
3.बाल गोविंद भगत का अलौकिक संगीत और गायन
लेखक उनके मधुर गान पर मुग्धग था। वे कबीर के पद गाते थे। जब कबीर के पंथ उनके कंठ से निकलते थे तो सजीव हो उठते थे। आषाढ़ की रिमझिम बारिश के बीच में खेत के बीचोबीच धान की रोपाई करते समय मिट्टी और कीचड़ से लथपथ जब बाल गोविंद अपने सुरों की तान तान छेड़ते तो समस्त स्त्री पुरुष उनके गायन से मुग्ध होते उंगलियां लय और ताल में रोपाई करती जाती। लोगों को पता भी नहीं चलता लोग संगीत के जादु में कब धानों की रोपाई हो जाती। स्त्री पुरुष खेतों में झूम उठते थे ।गोविंद द्वारा गाया हुआ गीत उनके होठों पर थिरकने लगता । भादो की रात में भी काली बदली ओं के बीच बाल गोविंद भगत का स्वर सुनाई देता खंजरी बजा कार्तिक के आते ही बाल गोविंद भगत की प्रभातियां शुरू हो जाती ।एक बार मांघ की कंप कपाती ठंड में भोर में ही लेखक ने उनको तालाब की मुंडेर पर स्नान करने के बाद गाते हुए देखा । भगत गाने में ऐसे व्यस्त थे ,की कमली उनके कंधे से कब उतर के नीचे गिर गई उन्हें सुध न थी । ऐसी कपाती ठंड में लेखक उन्हें देखकर स्तब्ध था उनके मस्तक पर श्रम विंदु झलक रहे थे।
शाम को जब बाल गोविंद भगत गाते, तो उनके भजनों में तल्लीन होकर अड़ोस पड़ोस के स्त्री पुरुष इस तरह खो जाते गाते गाते कब आंगन में नृत्य शुरू हो जाता उन्हें पता भी ना चलता।
4.धीर गंभीर विवेकी
बाल गोविंद भगत के इन गुणों का परिचय तब मिलता है जब उनके इकलौते पुत्र की मृत्यु हो जाती है उनका इकलौता पुत्र जो बहुत सुस्त सा था। वह था जो हमेशा पड़ा रहता था। बालगोबिन भगत उससे कुछ ज्यादा ही प्रेम करते थे। उनका मानना था कि ऐसे व्यक्ति को प्रेम की ज्यादा आवश्यकता होती है। उसकी मृत्यु पर बाल गोविंद भगत का व्यवहार आश्चर्यचकित करने वाला था। वह पुत्र की मृत्यु पर रोए नहीं बल्कि अपनी पुत्रवधू को उल्टा समझा रहे थे। यह रोने का समय नहीं है यह तो आनंद उत्सव का समय है क्योंकि एक विरहीणी आत्मा परमात्मा से जाकर मिल गई है ।यहां बाल गोविंद भगत के वैराग्य के साक्षात दर्शन होते हैं ।उनके विवेक और समझदारी का परिचय तब मिलता है जब वे अपने बेटे की पत्नी को उसके भाई के साथ मायके जाने के लिए कहते हैं। और उसके भाई से कहते हैं इसका दूसरा विवाह कर देना ,जबकि उस समय किसी स्त्री के दूसरे विवाह की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ।लेकिन समाज की परवाह किए बिना बाल गोविंद भगत ने समझदारी का परिचय देते हुए उसके जीवन को पुनः हरा-भरा करने का प्रयास किया और उसके भाई को समझाया कि वह इसे अपने साथ ले जाए जिससे उसका जीवन समल जाए।
।बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बार-बार मना करती है कि मैं अपने भाई के साथ नहीं जाऊंगी आपको बुढ़ापे में कौन चुल्लू भर पानी देगा कौन रोटी की पूछेगा परंतु बाल गोविंद भगत अपना स्वार्थ त्याग कर उसे अपने भाई के साथ भेज देते हैं।
5.बाल गोविंद भगत की मृत्यु
भगत जी हर वर्ष 30 कोस दूर गंगा स्नान करने जाते थे। वह वहां के लिए पैदल ही चल पड़ते थे रात भर खंजरी बजाते गाते और प्यास लगने पर पानी पीते। लंबे उपवास में रहकर भी वह मस्ती से आगे बढ़ते जाते। इस बार लौटे थे तो तबीयत सुस्त थी थोड़ा बुखार आने लगा था । गीत ध्यान आसन खेतीवाड़ी सब कुछ पहले जैसा ही चलता रहा दुर्बलता बढ़ती गई लोगों ने आराम करने के लिए कहा परंतु हंसकर टालते रहे। उस दिन भी संध्या में गीत गाए। भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना जाकर देखा तो बाल गोविंद भगत नहीं रहे थे उनका निर्जीव शरीर पड़ा था।
अभ्यास प्रश्न
प्रश्न नंबर 1
खेती-बाड़ी से जुड़े रहकर भी बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर -
बाल गोविंद भगत गृहस्थी से जुड़े थे फिर भी वे साधु कहलाते थे। इसके अनेक कारण थे।
वे कबीर को अपना साहब मानते थे। उनके आदर्शों का पालन करते थे। वे शरीर को नश्वर मानते थे और आत्मा को अमर और परमात्मा के अंश में मिलने वाली मानते थे वे कबीर के बनेने गीतों को गाते थे । कभी भी झूठ नहीं बोलते थे और बिल्कुल खरा व्यवहार करते थे वे किसी दूसरे की चीज नहीं लेते थे। उनके खेतों में जो कुछ पैदा होता था उसे एक कबीरपंथी मठ में ले जाते ।उसमें से जो हिस्सा बचता प्रसाद के रूप में उसी को वापस घर ले कर आते थे इस प्रकार ईश्वर के लिए समर्पित थे तो कहा जा सकता है कि वह ग्रहस्थ होते हुए भी एक सच्चे साधु थे।
प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेला क्यों नहीं छोड़ कर जाना चाहती थी?
उत्तर भगत बूढ़े हो चुके थे और उनके परिवार में पुत्रवधू के अतिरिक्त उनकी देखभाल करने के लिए कोई न था
इस कारण पुत्रवधू उन्हें अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहती थी
यदि उन्हें अकेला छोड़ छोड़ जाती तो कौन उनके बुढ़ापे का सहारा बनता ?उन्हें रोटी देगा उन्हें पानी कोन देगा ?बुढ़ापे में कौन उनकी देखभाल करेगा,? कौन उनकी सेवा करेगा ?यही सोचकर पुत्रवधू उन्हें अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहती थी।
प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं किस तरह व्यक्त की?
उत्तर ,_
अपने बेटे की मृत्यु होने पर उनके सबके पास बैठकर कबीर के गीत गाने लगे! वे अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए भगत रोये नहीं। उन्होंने कहा ये तो उत्सव मनाने का समय है आत्मा परमात्मा से का मिली ।ऐसा उन्होंने कहा ,वह पुत्र को समझा रहे थे का समय नहीं है आत्मा परमात्मा से मिल गई है। इस प्रकार भगत ने शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का भाव व्यक्त किया वे सच्चे मायने में एक विरक्त साधू की तरह थे।
प्रश्नप्र4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर
लेखक ने भगत के व्यक्तित्व और वेशभूषा का वर्णन इस प्रकार किया है ।उनका कद मध्यम था रंग गोरा था। बाल सफेद हो गए थे । बाल पक गए थे जिनमें उनका चेहरा जगमगाता रहता था ।कमर में एकमात्र लंगोट पहनते थे। शिर पर कबीरपंथी टोपी लगाते थे गले में बेडौल तुलसी की माला पहनते थे ।शरीर पर एक कमली रहती थी ।मस्तक पर रामानंदी तिलक रहता था जो नाक के एक छोर से शुरू होता हुआ मस्तक की और ऊपर जाता था ।वह साधु होकर भी ग्रहस्थ थेऔर
ग्रस्त होकर भी साधु थे ।वह संसार से विरक्त होने के कारण कबीर पंथी होने के कारण साधु थे और ग्रहस्थ का पालन करते थे इसलिए ग्रहस्थ थे। उनका आचार विचार बहुत पवित्र था वे सच्चे मायने में संत भी थे और गृहस्थी भी।
प्रश्न 5.
बाल गोविंद भगत सिंह दिनचर्या लोगों के लिए आज का कारण क्यों थी?
उत्तर
बाल गोविंद भगत की दिनचर्या अनेक कारणों से लोगों के लिए आश्चर्य बनी हुई थी अचरज का कारण थी ।क्योंकि वे जीवन के सिद्धांतों और आदर्शों का अत्यंत गहराई से पालन करते थे ।उन्हें आचरण में उतारते थे ।उदाहरण के लिए किसी की चीज न लेना बिना पूछे किसी की चीज छूना भी नहीं उनका अपना सिद्धांत था
नियमों का पालन बड़ी बारीकी से करते थे यहां तक कि किसी के खेत में शौच तक न जाते कड़कड़ाती ठंड में भी हड्डियां कपाने वाली ठंड होती थी स्नान करके बैठ कर भजन गाते मस्त हो जाते।
प्रश्न नंबर 6 पाठ के आधार पर बाल गोविंद भगत के मधुर गायन की विशेषताएं बताइए
उत्तर
जब बाल गोविंद भगत गाते थे तो लोग उनके गायन के स्वरों में झूम उठते थे। अपनी सुध बुध भूल जाते थे ।उनके गीत सुनकर लोगों की थकान मिट जाती थी। एक ताजगी का अहसास होता था ।भगत के गायन में लीन हो जाते थे और उनके गायन में एक निश्चित ताल और गति होती थी ।लोग उस ताल और गति में काम भी करते जाते और आनंद भी लेते जाते ।भगत के स्वर आरोह के साथ श्रोताओं के मन को भी ऊपर उठाते ले जाते वे सुध बुध खो कर संगीत की स्वर लहरियों में तल्लीन हो जाते थे ।भगत के स्वर की तरंग लोगों के मन के तारों को झंकृत कर देती थी ऐसा लगता था जैसे संगीत में डूबा हुआ उनका एक-एक शब्द स्वर्ग की ओर जा रहा हो ।
प्रश्न,7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे पाठ के उन प्रसंगों के आधार पर उल्लेख कीजिए।
उत्तर
कहानी में कुछ ऐसे मार्मिक प्रसंग हैं जिनके आधार पर शिद्ध किया जा सकता है कि बाल गोविंद भगत उस समय की प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। वह अपने विवेक की कसौटी पर हमेशा खरे उतरे ।उन्होंने उन्हीं मान्यताओं को माना जो जीवन की कसौटी पर खरी उतरती थी ।बाल गोविंद भगत ने अपने पुत्र की मृत्यु के बाद अपनी पुत्रवधू के दूसरे विवाह की बात कही।ये बात सिद्ध करती है कि वे एक विवेकी और समझदार ससुर के रूप में सामने उभरकर आते हैं ।सामाजिक मान्यताओं के विपरीत उन्होंने अपनी पुत्रवधू से ही अपने पुत्र पुत्र को मुखाग्नि दिलवाई ।
हमारे यहां विधवा विवाह का प्रचलन नहीं था और भगत ने विधवा विवाह और पुनर्विवाह का आदेश दिया यह बातें सिद्ध करती हैं ।
प्रश्न8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियां किस तरह चमत्कृत कर देती थी उस माहौल का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
आषाढ़ की रिमझिम फुहारों के बीच खेतों में चल रही थी दूसरी ओर बालगोबिन भगत की स्वर लहरियां पूरे वातावरण को गुंजायमान कर रही थी। भगत के कंठ से निकला मधुर संगीत खेतों में काम करने वाले लोगों के कानों में जब पड़ा तो वे झूम उठे। उनके होंठ भी उस गीत को गाने के लिए थिरक उठे ।ऐसा लग रहा था की स्वर लहरियां स्वर्ग तक जा रही। हो ऐसा और कुछ धरती के लोगों के कानों तक पहुंच रही हैं बच्चे भी खेलते हुए झूम नहीं लगे ।मेड पर खड़ी औरतों के होंठ हिल उठे पूरा वातावरण संगीतमय हो गया था ।रोपाई करने वाले लोगों की उंगलियां स्वर लहरियों में लयऔर ताल से चलने लगे संपूर्ण वातावरण में संगीत का जादू छा गया था।
Mam difficult word aur bata dijiye iss chapter ke
ReplyDeleteMam difficult word aur bata dijiye iss chapter ke please
ReplyDeleteठीक है करती हू अपडेट
ReplyDeleteThese are very useful to us.
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