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अयि गिरिनंदिनि (महा कवि कालिदास विरचित स्त्रोत)

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कोलकाता केे प्रसिद्ध कालीकट काली मंदिर में इस महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत   को लिखकर  ही  सिद्धि प्राप्त करके ,ही,कालिदास कालिदास बने । अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१॥ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते। दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रिय वासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमालय शृङ्गनिजालय मध्यगते। मधुमधुरे मधुकैटभ गञ्जिनि कैटभ भञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥३॥ अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुंड गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते। निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥४॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार ध...

क्या आप जानते हैं कि सत्यनारायण की कथा लिखने वाले कौन थे ?

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  जिसके पिता ने लिखी सत्यनारायण कथा, उसके 3 बेटों ने ‘इज्जत लूटने वाले’ अंग्रेज को मारा और चढ़ गए फाँसी पर आज अगर कोई कहे कि घर में पूजा है, तो ये माना जा सकता है कि “सत्यनारायण कथा” होने वाली है। ऐसा हमेशा से नहीं था। दो सौ साल पहले के दौर में घरों में होने वाली पूजा में सत्यनारायण कथा सुनाया जाना उतना आम नहीं था। हरि विनायक ने कभी 1890 के आस-पास स्कन्द पुराण में मौजूद इस संस्कृत कहानी का जिस रूप में अनुवाद किया, हमलोग लगभग वही सुनते हैं। हरि विनायक की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी और वो दरबारों और दूसरी जगहों पर कीर्तन गाकर आजीविका चलाते थे। कुछ तो आर्थिक कारणों से और कुछ अपने बेटों को अपना काम सिखाने के लिए उन्होंने अपनी कीर्तन मंडली में अलग से कोई संगीत बजाने वाले नहीं रखे। उन्होंने अपने तीनों बेटों को इसी काम में लगा रखा था। दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव को इसी कारण कोई ख़ास स्कूल की शिक्षा नहीं मिली। हाँ ये कहा जा सकता है कि संस्कृत और मराठी जैसी भाषाएँ इनके लिए परिवार में ही सीख लेना बिलकुल आसान था। ऊपर से लगातार दरबार जैसी जगहों पर आने-जाने के कारण अपने समय के बड़े पंडितों क...